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६२६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
प्रभु अधिक पित्तवाले पुरुपकी तरह कभी धूप नहीं चाहते थे और वर्षाऋतुमें पवन के वेगसे भी बढ़कर मेघोंकी मूसलधार वोंसे प्रभु जलचारी हाथीकी तरह जरासा भी घबराते न थे। पृथ्वीकी तरह सवको सहन करनेवाले और पृथ्वीके तिलकरूप प्रभु दूसरे भी अनेक दुःसह परीपहोंको सहते थे। इस तरह विविध प्रकारके उग्र तपोंसे और विविध प्रकारके अभिग्रहोंसे परीपहोंको सहन करते हुए प्रभुने बारह बरस विताए ।
(३१०-३२८) स्वामी अजितनाथको केवलज्ञानकी प्राप्ति
उसके बाद गेंडे की तरह पृथ्वीपर नहीं बैठनेवाले; गेंढेके सींगकी तरह अकेले विचरण करनेवाले, सुमेरु पर्वतकी तरह कपरहित; सिंहकीतरह निर्भया पवनकी तरह अप्रतिवद्धविहारी; सर्पकी तरह एकष्टिवाले; अग्निसे सोना जैसे अधिक कांति. वाला होता है वैसेही. तपसे अधिक कांतिवान; वृतिसे' सुंदर वृक्षकी तरह तीन गुप्तियोंसे घिरे हए; पाँच वाणोंसे कामदेवकी तरह पाँच समितियोंको धारण करनेवाले, आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थानका चितवन करनेसे चार प्रकारके ध्येयका भ्यान करनेवाले और ध्येयरूप-ऐसे प्रभु प्रत्येक गाँव, शहर और वनमें भ्रमण करते हुए सहसाम्रवन नामके उद्यानमें आए। वहाँ छत्रकी तरह रहे हुए सप्तच्छद वृक्षके नीचे प्रभुने, तनेकी तरह अकंप होकर कायोत्सर्ग किया। उस समय प्रभु अप्रमत
. १-चारों तरफ, गोलाकार बना हुया लकड़ी यादिका घेरा, बाढ़।