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________________ . श्री अजितनाथ-चरित्र { g৩৩ मेघस्वर, क्रौंचस्वर, हंसस्वर, मंजुम्वर, नंदीस्वर, नंदीघोप, सुस्वर, मधुस्वर और मंजुघोप नामके घंटे वजे । घंटोंकी श्रावाज सुनकर उन उन भुवनपतियोंके दोनों श्रेणियोंके देवता, इसी तरह अपने अपने इंद्रोंके पास चले पाए जिस तरह घोड़े अपने अपने स्थानों में चले जाते हैं। इंद्रोंकी आज्ञाओंसे उनके आभियोगिक देवतायोंने रत्नों और स्वर्णसे विचित्र पचीसहजार योजन विस्तारवाले विमान और ढाई सौ योजन ऊँचे इंद्रध्वज वनाए। हरेक इंद्र छः महिपियों, छःहजार सामानिक देवताओं, इनसे चौगुने ( २४००० हजार ) अंगरक्षकों और चमरेंद्रकी तरह दूसरे त्रायविंशादिक देवोंके साथ, अपने विमानमें वैठ, मेरु पर्वतपर प्रभुके पास आए । (४६१-४०२) पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस. किन्नर किंपुरुप, महोरंग और गंधवों के अधिपति काल, स्वरूप, पूर्णभद्र, भीम, किन्नर, सत्पु. रुप, अतिकाय और गीतरति इन नामोंके दक्षिण श्रेणी में रहने वाले तथा महाकाल, प्रतिरूप, माणिभद्र, महाभीम, किंपुरुप, महापुरुप, महाकाय और गीतयशा उत्तर श्रेणी में रहनेवाले,ऐसे दोनों श्रेणियोंके स्वामियोंने अपने प्रासनोंके कंपसे स्वागीका जन्म जाना । उन्होंने अपने अपने सेनापतियाँस मंजुस्वर और मंजुघोप नामके घंटे बजयाए । घंटोंकी आवाजोंके बंद होनेपर सेनापतियोंने प्रभुके जन्मकी घोषणा की। इससे पिशाच वगैरा निकाय (समूहों ) के व्यंतर अपने अपने इंद्रोंके पास पाए । उन इंद्रों के साथ वायस्त्रिंश और लोकपाल नागके देवता नहीं थे। कारण, उनके पास सूर्य और चंद्रकी तरह त्रायविंश और ३७ - -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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