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३६] त्रिषष्टि शलाना पुरुष-चरित्र: पर्व १. सन १.
भी कल्पवृज होते हैं जो सब रहली इच्छित चीजें देते हैं। समी इच्छित चीजें वहाँ मिलती थी, इसलिए वनलेठका जीव युगलियापन, स्वर्गकी तरह विषयनुलचा अनुभव करने लग। (२२५३-२३७)
तीसरा भव युगलियानी अयु पूर्ण कर धनसेठका जीव भवके दानके पन्नसे सौधर्न नेवलोक देवता हुआ । (२१)
चौथा भव वहाँले च्यवनर (योनि पूरीकर ) पश्चिन नहाविद्रहक्षेत्र विज्ञावती विजय (द्वीप) नवतन्य पवनने परगंवार देश गंधद्धि नारने, विद्याधरशिरोनलि शतवल नानने राजानी नांवा नाचन पनीनी चोखसे पुत्रत्य उत्पन्न हुआ। वह बहुत रत्वान था इसलिए उसना नान 'नहावर्त रंता गया। अच्छी तरह पालिद-योपित और रजनों द्वारा सुरनित महाबलइनार तरूवनलगा। ऋतशः चंद्रनी दह सब नलारे पूर्ण होकर वह नहानाग लोगोंके लिए
आनंदवायच हुआ। उचित सनपर अवतरले जानकार नानापितान निमत्री विनयजीले उनान विनयवती नानी कन्या उमा ब्याह किया ! कह जानदेव तेज हथियारके सनान, ऋनिनियोंने लिए नहाकरण) के सुनान और रविले लीलावन कोड-बाग के सनान यौवनचो प्रात हुना। (पूरा जवान हो गया है ) उसके पैर छुएकी पानी