________________
५५४ ] त्रियष्टि शलाका पुन्य-चरित्रः पर्व २. सर्ग २.
देवियाँ अपने अधिदेवता (रक्षक, ईश्वर) की तरह विजयादेवी: की, अधिक अधिक सेवा करने लगीं। मेघघटा जैसे सूर्यके विवको और पृथ्वी जैसे निधान (धनके खजाने ) को धारण करती है वैसेट्टी, विजया देवी और वैजयंती देवी गर्भको धारण करने लगी । जलसे मरी हुई नलाई स बीचमें उगे हुए स्वर्णकमलसे अधिक शोमनी है वैसेही स्वाभाविक मुंदरतावाली वें देवियाँ गर्म धारण करने अधिक शोमन लगी। स्वर्णकी
निके समान उनके गोरे मुन्वक्रमन्त, हार्थी दाँतकं छेदनेसे होनेवाली कांतिके जैसे पीलापनको धारण करने लगे। कुदरती तारनेही कानोंतक फैले हुए उनके नेत्र, शरद ऋतुक कमलकी तरक अधिक विकसित होने लगे। तुरत चोकर उजाली हुई सोनकी शलाकार समान उनकी सुंदरता अधिकाधिक होने लगी। सदा मंथरगति (धीमी चाल ) से चलनवाली देवियाँ मदसें बालसीवनी इराजहंसिनीकी तरह बहुत आहिस्ताबाहिस्ता चलने लगीं। दोनों मुखदायक गम, नदीमें उगे हुए कमलनालकी तरह और सीपोंमें पैदा हुए मौक्तिक रत्नकी तरह अति गृढ रीति से बढ़ने लगे। (१०-१२२)
जन्म इस तरह नौ महीने और साढ़े आठ दिन बीत तब माघ महीनेकी मुदि आठम दिन, शुभ मुहूर्त में, सभी गृह उच्चन्यानमें श्राप थे तब रोहिणी नक्षत्र में, सत्य और प्रिय वाणी जैसे पुण्यको जन्म देती है उसी नरह विजयादेवीन गज लक्षावाले एक पुत्रको जन्म दिया। देवीको या पुत्रको किलीको-प्रसवसंबंधी कोई दुःख नहीं हुआ। कारण, तीर्थंकरोंका यह न्वा