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श्री अजितनाथ-चरित्र
अधिपति चक्रवर्ती होंगे।" __ इस तरह सपनोंका फल सुनकर राजा संतुष्ट हुआ और उसने नैमित्तिकोंको गाँव, जागीर, अलंकार और वस्त्र उपहारमें दिए।
"महापुमांसो गर्भस्था अपि लोकोपकारिणः ।"
[महापुरुष गर्भावासमें भी लोगोंके लिए उपकारकर्ता होते हैं । ] कारण, स्वप्नशास्त्रके जानकारोंने महापुरुषोंके जन्मकी बात कही,इसीसे उनकी दरिद्रता उनके जीवनभरके लिए नष्ट हो गई। कल्पवृक्षोंकी तरह वस्त्रालंकारोंसे सुशोभित वे राजाकी आज्ञासे अपने अपने घर गए । गंगा और सिंधु जैसे समुद्रमें जाती हैं वैसेही विजया और वैजयंती भी खुश खुश अपने अपने महलोंमें गई । (१८-१०८)
फिर इंद्रकी आज्ञासे देवों (वैमानिक देवों) और असुरों (भुवनपति देवों) की स्त्रियोंने विजयादेवीकी सेवा करना आरंभ किया। वायुकुमार देवोंकी रमणियाँ हर रोज आकर उनके घरसे रज (धूलि), तिनके और काष्ठ श्रादि दूर करने लगीं; मेघकुमारकी देवियाँ दासियोंकी तरह उनके आँगनकी जमीनको गंधोदकसे छिड़कने लगीं; छः ऋतुओंकी अधिष्ठाता देवियाँ, मानो गर्भस्थ प्रभुको अर्घ्य देनेके लिए तैयार हुई हों ऐसे हमेशा पाँच रंगोंके फूलोंकी वारिश करने लगीं; महादेवीके भावोंको जाननेवाली ज्योतिष्क देवियों समयके अनुकूल और सुखकर मालूम हो ऐसा प्रकाश करने लगी; वनदेवियाँ दासियोंकी तरह तोरणादिक रचने लगी और दूसरी देवियों चारण-भाटोंकी स्त्रियोंकी तरह विजयादेवीकी स्तुति करने लगीं। इस तरह सभी