________________
५३८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग १.
.
न धूपकी निंदा करते थे और न छायाकी ही याद करते थे; न किसी समय पंखेका उपयोग करते थे, न कमी स्नान या (चंदन थादिका) विलेपनही करते थे।
५-ईस-मशक परिसहः-डाँस और मच्छर वगैरा काटते थे तो भी वे महात्मा सबकी भोजनलोलुपताको जानते थे इससे उनपर न नाराज होते थे, न उनको उड़ाते थे और न उनको निराशही करते थे। वे उपेक्षा करके रहते थे।
६-अचेलक परिसहः--न वे यह सोचते थे कि वन नहीं है और न वे यही विचारते थे कि यह बन्न ग्वराव है। वे दोनों . तरहसे वस्त्रकी उपेक्षा करते थे। वे लाभालाभकी विचित्रताको जानते थे। वे कभी समाधि (ध्यान) में बाधा नहीं पड़ने देते
थे।
__-अरति परिसहः-धर्मरूपी श्राराम (बगीचे) में प्रीति रखनेवाले वे महामुनि कमी अरति (असंतोप)न करते थे। घे चलते, खड़े रहते या बैठते हुए सदा संतुष्टही रहते थे।
८-स्त्रीपरिसहः-जिनका, संगतिरूपी कीचक्रमी धोया न जा सके ऐसा होता है, और जो मोक्षरूपी दरवाजेकी अर्गलाके समान होती हैं उन त्रियोंका वे कभी विचार भी नहीं करते थे। कारण, उनका विचार भी धर्मनाशका कारणही होता है।
t-चर्या परिसहः-प्रामादिम नियमित रूपसे नहीं रहनेपाले, इससे स्थानबंधसे वर्जित वे मुनि महाराज दो प्रकारके अभिग्रह सहित अकेलेही विचरण करते थे। . १०-निषद्या परिसहः-स्त्रीरूपी फटकसे रहित श्रासनादि