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२] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र पर्व १ सर्ग १.
__ होते हैं ( पापरहिन होने हैं ), जो तीन गौरव ( १. रसगौरव,
२. ऋद्धि गौरव, ३. साता गौरव) रहित होते हैं। तीन गुप्तियाँ धारण करनेवाले और पाँच समितियाँ पालनेवाले
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१. मधुरादि रसकि स्वादका अमिमान करना । २. ऐश्वर्यधन-सम्पति आदिका अमिमान करना। ३. मुखका अमिमान करना।
४. निवृत्तिको या रोकनेको गुप्ति कहते हैं। इसके तीन भेद है। १-मनोगुप्ति-ध्यानको मनको बुरे संकल्लों या विचारों में प्रवृत्त न होने देनेको 'मनोगुप्ति' कहते हैं । २-वचनगुप्ति-मौन रहनेको,
और यदि बोलनेकी नरूरत ही हो तो ऐसे वचन बोलनेको, जिनसे किसी प्राणीको दुःख न हो, 'वचनगुप्ति' कहते हैं। ३-कायगुप्तिशरीरको स्थिर रखना और यदि हलन-चलन करनेकी जरूरत ही हो तो ऐसा हलन चलन करना-जिसने किसी प्राणीको दुःख न हो। इसीका नाम 'कायगुप्ति है।
५. अच्छी, स्वपरकल्याणकारी प्रवृत्तिको 'समिति' कहते हैं। इसके पाँच मेद है। १-ईर्यासमिति-इस तरहसे चलना कि किमीमी तीवको कोई तकलीफ न हो। २-मापाममिति-ऐसे वचन बोलना बिनसे किसी नीवको कोई दुःख न हो। ३.एपणासमिति-दोषोंको टालकर निर्वछ याहारपानी लानेकी प्रवृत्ति । ४-आदान-निक्षेपसमिति-पात्र, वस्त्र तथा दूसरी चीनको सावधानीसे-प्रमादरहित होकर उठाने और रखनेकी प्रवृत्ति । ५-परिष्टापनिकासमिति-मल, मूत्र और धुक्रको सावधानीसे त्यागनेकी प्रवृत्ति ।