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४६४ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष - चरित्र: पर्व ९. सूर्य ६.
पुतलीके हाथमें कुरंटकः पुष्पों की नालाचोंसे युक्त मोतियों नया प्रवालोंसे गुँया हुआ और स्फटिकमणिके दंडवाला सफेद छत्र था । हरेक प्रतिमाकी दोनों तरफ रत्नकी, चामरधारिणी, दो दो पुतलियाँ थीं; और सामने नाग, यज्ञ, भूत और कुंडबारिणी दो दो पुनलियाँ थीं। हाथ जोड़के खड़ी हुई और सारे शरीरमें उजली वे नागादिक देवोंकी रत्नमय पुनलियाँ ऐसी शोभती थीं, मानो नागादि देवही वहां बैठे हो । (६०३-६०७ )
देवके ऊपर उनके रत्नों के चौबीस घंटे, संक्षिप्त किए हुए सूर्यचित्र के जैसे माणिक्योंके दर्पण, उनके पास योग्य स्थानोंपर रखी हुई सोने की दीवडे, रत्नों के करंडिए, नदीमें उठनेवाली भँवरीके समान गोलाकार फूलोंकी चोरियाँ, उत्तम अंगोछे, आभूषणों की पेटियाँ, सोनेकी धूपदानियाँ व आरनियाँ, रत्नों के मंगलदीपक, रत्नों की मारियाँ, मनोहर रत्नमय थाल, सोनेके पात्र, रत्नोंके चंद्रकलश, रत्नोंके सिंहासन, रत्नोंके अष्टसंगलीक, तेल के सोने के गोल डिब्बे, धूप रखने के लिए सोनेके पात्र, और सोने के उन्नत्तहस्तक', ये सारी चीजें चौबीसों श्रतोंकी प्रतिमाओं के पास प्रत्येक प्रतिमाके पास ये सभी सत्रह सत्रह चीजें रखी थीं। इस तरह, तरह तरहके रत्नोंका तीन लोकमं श्रति सुंदर चैत्य,भरत चक्रीकी चाज्ञा होते ही, सब तरहकी कलाओंको जाननेत्रान्ते वर्द्धकी बहनने, तत्कालही विधिके अनुसार बना दिया । मानो मूर्तिमान धर्म हो ऐसे चंद्रकांत मणिके गढ़से, तथा दीवारों पर चित्रित किए गए ईहामृगों (भेड़ियों), बैलों, मगरों,
१–कुरंडक या कूरंडिका एक पीले फूलोंवाला पौधा । इसे कटसरैया भी कहते हैं । २- सोने कनक बने हुए करवाल ।