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________________ ४८६] त्रिषष्टि शन्ताका पुनए-चरित्र: पत्र १. मग, नानकर मी मर व यंत्रु सुनसे क्यों नहीं बोलने हैं? हाँ ! हाँ! मैं लमना। ये ना स्वामीकही अनुगामी है। जब स्त्रामीही नहीं बोलते हैं तो ये मी ने बोलेंगे ? अहो ! मेरे सिवा दूसँग कोई गला नहीं है जो प्रापन्न अनुयायी नहीं हुआ हो । तीन लोककी रक्षा करनेवान्न श्राप, बाहुबली वगैग मेरे छोटे भाई, ब्राझी और सुंदरी बहन, पुंडरीक बगैरा मेंरे पुत्र, अंबांन वगैग मेर, पौत्र, चं नमी क्रमयी शत्रुओं का नाश कर मांच गए हैं। मगर में अब भी इन जीवनको प्रिय मानना हुया निंदा।" (४६३-५०) में शोकने निद (बैंगन्यवान ) मानो मरनेको नैयार होगेसी दशा चक्राची देखकर इंद्रन उसे मनमाना प्रारंभ किया, हमहामन्त्र मग्नु पन चन्तामन्त्रि संसार समुद्र को नैर है और इमरॉकी भी इन्दनि नारा है। किनारे के द्वारा महानदी की नरह, इनकं चलाए हुप शासन (धन) द्वारा मंसारी जीव संमार-समुद्रको नैगे। ये प्रमु बुद्र चनऋत्य हुए हैं और दूसरे लोगों को अनार्य करने के लिए लक्ष पूर्व तक दीवावस्था में रहे हैं। राजा! सब लोगोंपर अनुग्रह करके मान गए हुए इन जगत्पनि लिग, तुम शोक क्यों करतं हो ? शोक उनके लिए करना चाहिए जो मरकानहान्त्रिकबरलय चौरासी लान्त्र योनियोंने अनेक बार भ्रमण करते हैं, मगर मोजन्यान जानबालों के लिए शांक करना किसी भी तरह योग्य नहीं है। ई. राजा मायारा मनुष्यकी नरह प्रमुके लिए शोक करते तुन्द, तान क्यों नहीं पानी? शोक करनेवाल नुमकी और.शोचनीय (जिनके लिए मोक्र क्रिया नाय गले प्रयको शोक करना
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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