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२६] त्रिषष्टि शलाका पुस्प-चरित्र पर्व १ सर्ग १.
जो मन और प्राणको प्रवृत्त कर, शिक्षा, उपदेश और पालाप (बातचीत) को समझते हैं-समझ सकते हैं उनको संनी जीव कहते हैं । जो संज्ञीसे विपरीत होते हैं व असंही कहलाते हैं । (१३३-१६४)
इंद्रियाँ पाँच हैं; १ स्पर्श, २ रसना (जीम ), ३ घाण (नासिका), ४ चक्षु (आंख ), ५ श्रोत्र (कान)।
स्पर्शका काम है छूना, रसनाका काम है चखना (स्वाद जानना ), प्राणका काम है सूंघना, चक्षुका काम है देखना और श्रोत्रका काम है मुनना । (१६५.) ___ कीड़े, शंख, गढूपढ़ ( केंचुआ ), जॉक, कपर्दिका (कौडी) और (मुतुही नामका जलजनु ) वगैग अनेक तरहके दोइंद्रिय जीव हैं। (१६६)
यूका () मत्कुण (खटमल ), मकोड़ा और लीख वगैरा तीनइंद्रिय जीव हैं। ___ पनंग (फलंगा), मन्त्री, भोग, डाँस बगैंग प्राणी चारइंदिर है। (१६७) ___ जलचर (मछली, मगर बगैंग जलकें नीव ), स्थलचर. (गाय भैंस वगैरा पशु ), खेंचर (कबूतर, तीतर, कौवा वगैरा पंखी), नारकी ( नरक में पैदा होने वाले ), देव (स्वर्ग में पैदा होनेवाले ) और मनुष्य ये सभी पंचेन्द्रिय जीव है । (१६८) ___ ऊपर कहे जुए जीवोंकी (मारकर) आयु समाप्त करना, उनके (शरीरको) दु:ख देना और उनके (मनको) क्लेश पहुंचानका नाम वध करना (हिंसा करना) है । और वध