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४७४ | त्रिपष्टि शलाका पुरुष - चरित्रः पर्व १ सर्ग ६.
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यही जीव श्रग्निसंयोग' से स्वच्छ हुए चम्बकी तरह या जातिव्रत (उत्तम) सोनेकी तरह शुक्लध्यानरूपी अग्निके संयोगसे क्रमशः शुद्ध होगा । यह पहले तो इसी भरत क्षेत्र में पोतनपुर नामके नगर में त्रिपृष्ट नामका प्रथम वासुदेव होगा। फिर अनुक्रम• से पश्चिम महा विदेहमें धनंजय और धारणी नामक दंपतिका पुत्र, प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती होगा । फिर चिरकालतक संसारमें भ्रमण करके इसी भरतक्षेत्र में महावीर नामक चौबीसवाँ तीर्थकर होगा । ( ३७३-३७६ )
यह सुन स्वामीकी आज्ञाले भरतेश भगवानकी तरह मरीचिको भी चंदना करने गए। वहाँ जा चंदना करते हुए भरतने कहा, "आप त्रिपृष्ट नामक प्रथम वासुदेव और महाविदेद्दक्षेत्र में प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती होंगे; मगर मैं न आपके वासुदेवपनको वंदना करता हूँ और न चक्रवर्तीपनको ही । इसी तरह आपकी इस परिबाजकताको भी बंदना नहीं करता। मैं वंदना इसलिए करता हूँ कि आप भविष्य में चौबीसवें तीर्थकर होंगे।" यों कह तीन प्रदक्षिणा दे, मस्तकपर अंजलि जोड़ भरतेश्वरने मरीचिको वंदना की । पश्चात पुनः जगत्पतिको वंदना कर, सर्पराज जैसे भोगवतीमें जाता है वैसेही, भरतेश्वर अयोध्या में गया । (३०-३८४ ) मरीचिका कुलमद और नीच गोत्रका बंध
भरतेश्वरके जाने के बाद, उनके वचनोंसे हर्षित हो मरीचिने तीन बार ताली बजा, श्रानंदकी अधिकता से इस तरह
१- यहाँ 'अग्निसंयोग से अभिप्राय रेशमी वस्त्र माफ करने के लिए की जानेवाली क्रिया से है।