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भ० ऋषभनाथका वृत्तांत
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वैक्रिय किए हुए (बनाए हुए ) चार वृषभों (बैलों ) मेंका ऊँचे शृंगवाला एक वृषभ हो और वह पर्वत ऐसा शोभता था मानो नंदीश्वर द्वीपकी बावड़ियोंमें स्थित दधिमुख पर्वतोंमेंका
आया हुआ एक पर्वत हो; जंबूद्वीपरूपी कमलकी एक नाल हो; या पृथ्वीका श्वेत रत्नमय मुकुट हो। वह निर्मल तथा प्रकाशवाला था, इससे ऐसा जान पड़ता था कि मानों देवता उसे हमेशा स्नान कराते हों और वस्त्रोंसे उसे पोंछते हों। वायुके द्वारा उड़ाए गए कमलकी रेणुसे उसके निर्मल स्फटिक मणिके तटको स्त्रियों नदीके जलके समान देखती थीं। उसके शिखरोंके अग्रभागपर विश्राम लेनेकेलिए बैठी हुई विद्याधरोंकी स्त्रियोंको वह वैताव्य और क्षुद्र हिमालय पर्वतका स्मरण कराता था। ऐसा जान पड़ता था मानों वह स्वर्गभूमिका दर्पण हो; दिशाओंका अतुल हास्य हो या ग्रह-नक्षत्रोंको निर्माण करनेकी मिट्टीका अक्षय स्थल हो । उसके शिखरोंके मध्यभागमें क्रीडासे थके हुए मृग बैठे थे, उनसे वह अनेक मृगलांछनों (चंद्रों.) का भ्रम पैदा करता था। निर्भरणोंकी पंक्तियोंसे ऐसा शोभता था मानों वह निर्मल अर्द्ध वनको छोड़ देता हो या मानों सूर्यकांत मणियोंकी फैलती हुई किरणोंसे ऊँची पताकाओंवाला हो। उसके ऊँचे शिखरके अगले भागमें सूर्यका संक्रमण होता था, इससे वह सिद्ध लोगोंकी मुग्ध स्त्रियोंको उदयाचलका भ्रम कराता था। मानो मयूरपंखोंसे बनाए हुए बड़े छत्र हों ऐसे अति आर्द्रपत्रों ( हरे पत्तों ) वाले वृक्षोंसे उसपर निरंतर छाया रहती थी।
खेचरोंकी स्त्रियों कौतुकसे मृगोंके बच्चोंका लालन-पालन