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४१६ । त्रिषष्टि शलाका पुरुष-परित्रः पर्व १ सर्ग ५.
किया कि उसे मुनफर देवताओंकी खियाँ हरिणीकी तरह भयमीत हो गई। मानो मध्यलोकको क्रीडाद्वारा भयमीत करने वालेहाँ ऐसे चक्री और बाहुबलीन क्रमशः सिंहनाद किए। ऐसा करने करने वायत्री मुंडनी तन्ह और सपने शरीरकी तरह मरत राजाके सिंहनादकी श्राबाज क्रमशः कम होती गई और नदीके प्रवाही तरह पर्व मनके लंबकी तरह बाहुबलीका सिंहनाद अधिकाधिक बढ़ता गया। इस तरह शान्नार्थक यादमें जैसे वादी प्रतिवादीको जीतना हवेसट्टी वायुद्ध में भी बाहुबलीने भरत राजाको जीत लिया! (३१-६०७)
फिर दोनों भाई, बद्धकन्न (साँकलोंने ब) हाथियोंकी तह, बाह-युद्ध के लिए बद्धपरिकर हुए (कमर कमी) । उस समय उचन्नने हुए नमुलकी नन्ह गर्जना करता बाहुबलीका, मानकी छड़ी धारण करनेवाला, मुन्थ्य बड़ीदार बोला, "है पृथ्वी ! वन कीनों जैसे पर्वतों को पकड़ और अपना सारा बल जमाकर थिर हो । नागरान! चारों तरफसे पवन
ग्रहण कर, उसे रोक, पर्वतकी तरह हो पृथ्वीको ममाल । हे महावराइ ! समुद्रके श्रीचने नोट, पहलेको यचानको मिटा, वाजा हो पृथ्वी गोद में रखा ईकमल! अपने व समान अंगको चारों तरसे निचोड़पाठकोमजबूत बना पृथ्वीकोला! है दिगगनो पहलेची तरह प्रभादसे या सदसे नमकियों न लो,सब तरह से सावधान हो बमुवाको धारण करो। कारण,यह बचमार पाहुबली, बसार मुनायास क्रीक साय मल्लयुद्ध करनेको खड़ा होता है। (३०८-६१५)
पिदोनों महान वा टोकी। इननी भापान ऐसा