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२०] त्रिषष्टि शनाका पुरुष- चरित्र पर्व १ सर्ग १.
जिनको, मैं यह कहकर लाया था कि मैं उन्लेमें श्रापकी सब तरहने व्यवस्था करूँगा उनकी पाजनक मन याद भी नहीं छिया । अत्र में जाकर किस तरह उनको अपना मुँह दिन्नाऊँगा तो भी में थानही जाकर उनके दर्शन ऋलंगा और अपने पापको घोऊँगा। कारण, इसके लिया उन, सब तरहकी इच्छाओस रहित, महात्मानी में दूसरीच्या सेवा कर सकता है ? (११०-११५)
इन नाहक विचारक बाद भनक लिए पातुर बने हुए, सेटको गानकी चौथी पहा दुसरी पहरमी मालूम होने लगी। गन बीन गई । संवेग हुश्रा | अच्छे बन्त्राभूषण (कपड़े और जेबर) पहनकर मंट अपने बास बास श्रादमियोंको साथ
रिजीची, पायल्यान, झोपड़ा गया। बहनापट्टी हार पत्तोंने छाई हुई थी। इस धामकी दीवारें थीं। उनमें पड़े हुए छेद ऋजीदके काम मान्नुम होने थे। वह निर्जीव जमीन पर बनी हुई थी 1 (११३-११८ )
वहाँ उनन मंत्रीप श्राचार्य को देखा। उसे जान पड़ा कि आचार्य पापनपी मनुनको मयनेत्राल हैं (पायोंको नारा करनेवाले हैं), मोन माग है, धर्म मंडप है, नजके स्थान है, कपायरूपी गुलम (बास विशेष) के लिए, इिनके समान है, कन्याग लभी हार है, सब अद्वैन भूषण है, मानकी इच्छा रन्ननवालांलिपलयन है, नप माज्ञान अवतार. है, मुर्निमान आगम है और नीयको चलानवान्ले दीर्थकर है।
(११-१२१) ___ उनके श्रासपान दुसरं मुनि थे। उनमें कोई ब्यान लगा रहे थे, कोई मौन धारण किए घंट, फिमीन भायोमा