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भरत-घाहुघलोका वृत्तांत
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हुए कंचुकके समान मालूम होता था। वह देदीप्यमान कवचसे ऐसा शोभता था जैसे घनविद्रुम (सघन प्रवालोंसे) समुद्र शोभता है। फिर उसने, पर्वतके शिखरपर वादलों के मंडलकी तरह शोभनेवाला, शिरखाण धारण किया; बड़े बड़े लोहेके बाणोंसे भरे हुए दो भाथे उसने पीठपर बाँधे, वे ऐसे जान पड़ते थे मानों सो से भरे पातालविवर (बड़ी बड़ी बाँबियाँ) हैं; और उसने अपने बाएँ हाथमें धनुष धारण किया, वह ऐसा जान पड़ता था.मानों प्रलयकालके समय उठाया हुआ यमराजका दंड है। इस तरहसे तैयार वाहुबली राजाको, स्वस्तिवाचक पुरुष "आपका कल्याण हो" ऐसा आशीर्वाद देने लगे; गोत्रकी बूढ़ी खियाँ "जीओं ! जीओ" कहने लगीं; बूढ़े कुटुंबी लोग कहने लगे, "खुश रहो ! खुश रहो!" और चारण-भाट "चिरजीवी हो! चिरजीवी हो!" ऐसे ऊँचे स्वरसे पुकारने लगे। ऐसे सबकी शुभ कामनाके शब्द सुनता हुआ महाभुज बाहुबली, आरोहकके ( सवार करानेवाले के ) हाथका सहारा लेकर इस तरह हाथीपर चढ़ा जैसे स्वर्गपति मेरुपर्वत पर चढ़ता है।
(३८१-३८८) इस तरफ पुण्यबुद्धि भरत राजा भी शुभ लक्ष्मीके भांडारके समान अपने देवालयमें गया। वहाँ महामना भरत राजाने
आदिनाथकी प्रतिमाको, दिग्विजयके समय लाए हुए पद्मद्रहादि तीर्थों के जलसे स्नान कराया। उत्तम कारीगर जैसे मणिका मार्जन करता है वैसे देवदूष्य पत्रसे उसने उस अप्रतिम प्रतिमाका मार्जन किया अपने निर्मल यशसे पृथ्वीकी तरह, हिमापल कुमार वगैरा देवोंके दिए हुए गोशीर्षचंदनसे उस प्रतिमा