________________
भरत याहुबलीका वृत्तांत
[ ३७५
-सब राजाओंको जीतकर वह अब इस लोहेके कीलेपर (शूलीपर ) क्यों चढ़ना चाहता है ?
-इसका कारण अखंड चक्रवर्तीपनका अभिमान है।
-छोटे भाईसे हारा हुश्रा वह राजा अपना मुँह कैसे दिखा सकेगा।
-सब जगह जीतनेवाला आदमी भावीमें होनेवाली हार. को नहीं जानता।
-भरत राजाके मंत्रियोंमें क्या कोई चूहके समान भी नहीं है ?
-उसके फुलक्रमसे बने हुए अनेक बुद्धिमान मंत्री हैं।
-तब मंत्रियोंने भरतको सर्पका मस्तक खुजानेसे क्यों नहीं रोका ?
- उन्होंने उसको रोका तो नहीं प्रत्युत उत्साहित किया है। होनहारही ऐसा है ।" (१६५-१७४)
नगरनिवासियोंकी ऐसी बातें सुनता हुआ सुवेग नगरसे पाहर निकला। नगरद्वारके पास, मानों देवताओं ने फैलाई हो ऐंसे ऋषभदेवजीके पुत्रोंकी युद्धकथा उसे इतिहासकी तरह सुनाई दी। क्रोधके मारे सुवेग जैसे जैसे वेगसे आगे बढ़ने लगा पैसेही वैसे, मानों स्पर्धा करती हो ऐसे युद्धकथा भी बड़े वेगसे फैलने लगी। केवल बातें सुनकर ही, राजाकी आज्ञाकी तरह, हरेक गाँवमें और हरेक शहरमें वीर सुभट लड़ाई के लिए तैयार होने लगे। योगी जैसे शरीरको मजबूत बनाते हैं वैसेही, कई लड़ाईके रथ, शालाओं में से निकालकर उनमें नवीन धुरियाँ