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३७४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ५.
के अनुमानसे राजद्वारपर खड़े हुए प्यादे क्षुब्ध हो उठे। उनमेंसे कई ढालें ऊँचीनीची करने लगे, कई तलवारें घुमाने लगे, कई फेंकने के लिए चक्र तैयार करने लगे,कई मुद्गरें उठाने लगे,कई त्रिशूलें झनझनाने लगे, कई भाथे बाँधने लगे, कई दंड ग्रहण करने लगे और कई परशुओंको आगे बढ़ाने लगे । सब प्यादोंको इस तरहकी चेष्टाएँ करते देख, चारों तरफ पद पदपर उसे अपनी मौत सामने दिखाई देने लगी। घबराहटसे उसके पैर सीधे नहीं पड़ते थे। इस तरह सुवेग नरसिंहके (बाहुवलीके ) सिंहद्वारसे बाहर निकला । वहाँसे रथमें बैठकर नगरके लोगोंकी आपसमें होती हुई नीचे लिखी वातचीत उसने सुनी।
(१५५-१६४) -"रानद्वारमंसे यह नया श्रादमी कौन निकला ? -~-यह भरत राजाका दूत मालूम होता है। -च्या पृथ्वीपर बाहुबलीके सिवा दूसरा भी कोई राजा
-~-हाँ, बाहुबलीके बड़े भाई भरत अयोध्या राजा हैं।
इस दूतको उन्होंने यहाँ क्यों भेजा ? -अपने भाई राजा वाहुवलीको बुलाने। -~-इतने समयतक हमारे स्वामीके भाई राजा कहाँ गए
थे?
-भरतक्षेत्रके छःखंडको जीतने गए थे। -अभी उन्हें अपने भाईको बुलानेकी इच्छा क्यों हुई ? ~दूमरं मामूली राजाओंकी तरह सेवा कराने।