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भरत याहुयलीका वृत्तांत
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देकर इनका मित्र बन गया है, तब श्राप सिर्फ उनके पास
आकर ही उनको अपने अनुकुल क्यों नहीं बना लेते है ? यदि श्राप धीरताके अभिमानसे महाराजका अपमान करेंगे तो, आप सेना-सहित उनके पराक्रमरूपी समुद्र में, मुट्ठीभर बिगड़े हुए धान्यकं श्राटेक समान, विलीन हो जाएंगे। मानों चलते-फिरते पर्वत हो ऐसे ऐगवतके समान उनके चौरासी लाख हाथियोंको प्राते हुए कौन सहन कर सकता है-रोक सकता है ? और प्रलय. के समुद्र के कल्लोलकी तरह सारी पृथ्वीको भिगोते हुए उतनेही यानी, चौरासी लाख घोड़ों और चौरासी लाख रथोंको रोकनेकी ताकत किसमें है ? छियानवे करोड़ गाँवों के मालिक महाराजाके छियानवे करोड़ प्यादे सिंहकी तरह किसको भयभीत नहीं कर देते हैं ? उनका मुंपण नामका एक सेनापतिही,अगर हाथमें दंड लेकर आता हो तो, देव या दानव भी उसका मुकाबला नहीं कर सकते हैं। सूर्यके लिए अँधेरा जैसे किसी गिनतीमें नहीं है गेसेही, चक्रधारी भरतचक्रोके लिए तीन लोक भी किसी गिनतीमें नहीं है। इसलिए हे बाहुवली ! तेज और वय दोनाम बड़े महाराजा, राज्य और जीवनकी इच्छा रखनेवाले आपके लिए सेव्य है ।" (८६-१२०).
सुवेगकी बातें सुनकर अपने वलसे जगतकं बलको नाश करनेवाले बाहुबली, दुसरे समुद्र हों ऐसे, गंभीर वाणीमें बोले, "हे दूत तुम धन्य हो! तुम वातूनियोंमें अग्रणी हो इसीसे मेरे सामने ऐसे वचन बोलनेमें समर्थ हुए हो। बड़े भाई भरत हमारे पिताके समान हैं। वे बैबुसमागम-भाईसे मिलना चाहते हैं, यह बात उनके योग्यही है मगर हम इसलिए उनके पास नहीं
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