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३६० ] त्रिपष्टि शन्ताका पुरुष-चरित्र: पर्व १. मर्ग ५.
मैं एक संकटमें माया हूँ।" (22-१७)
अमात्यने कहा, "हमहाराज! आपके इस संकटको श्रापहाक महत्व श्राप छोटे भाई, टालेंगे। कारण, सामान्य गृहत्या में भी यह व्यवहार है कि बड़े भाई श्रादा दें और छोटे भाई उसका पालन करें। इसलिए सामान्य गतिक अनुसार मंदेश पहुँचानवाला दूत मनकर, छोटे भाइको श्रादा कानिए। है देव! मरी-सिंह जिन नरह जीन बरदाश्त नहीं करना बंस ही, वीर अभिमानी श्रापका छोटा भाई अगर सारे जगतके लिए मान्य श्रापकी श्राहा न माने तो फिर इंद्रकं समान पराऋमी पाप उन्हें दंड दीजिए। इस तरह करनस लोकाचारका पालन होगा और आपको भी कोई दोष नहीं देगा । (१८२२)
महाराजान मंत्रीकी यह बात मान ली ! कारण,"उपादया शास्त्रलोकव्यवहारानुगा हिं गी ।"
[ शाब और लोकव्यवहार अनुसार जो बात हो उसे माननी चाहिय। फिर उन्होंने नीनिनीर वाचाल (वातचीन ऋग्नमें चतुर ) से मुवेग नामक दूतको मील देकर बाहुबली पास भेजा। अपने स्वामीकी श्रेष्ट सीन्त्रको, दूतपनकी दीनाकी नरह, अंगीकार कर, व्यौ सवार हो, सुवेग तशिला नगरकी तरफ चला । (२२-२२)
मुबंग सारी सेना ले, वेगवान रथमें बैट, जब बिनीता नगरी बाहर निकला तत्र, पमा जान पड़ता था, मानां वह
भरतपतिकी शरीरधारिणी यात्रा है। गन्नमें चलते समय शुरू‘मट्टी, मानों वह विधाताको विपरीत देखता हो इस तरह, बार.