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.. भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत [ ३५३ जो कि हमारा भी बड़ा भाई है, युद्ध करना नहीं चाहते।"
. इस तरह दूतोंसे कह अपभदेवजीके - 5 पुत्र अष्टापद पर्वतपर समवसरण में विराजमान अटपभस्वामी के पास गए । वहाँ पहले तीन प्रदक्षिणा दे उन्होंने परमेश्वरको प्रणाम किया। फिर वे हाथ जोड़, मस्तकपर रख, इस तरह स्तुति करने लगे,
(७६८-८०८) "हे प्रभो ! जब देवता भी अपने गुणोंको नहीं जान सकते है सब आपकी स्तुति करने में दूसरे कोन समर्थ हो सकते हैं ? तो भी, बालकके समान चपलतावाले, हम आपकी स्तुति करते है। जो हमेशा आपको नमस्कार करते हैं वे तपस्वियोंसे भी अधिक है और जो आपकी सेवा करते हैं वे योगियोंसे भी ज्यादा है। हे विश्वको प्रकाशित करनेवाले सूर्य ! प्रतिदिन नमस्कार करनेवाले जिन पुरुपोंके मस्तकोपर, आपके चरणों के नाखूनोंकी किरणें आभूपणके समान होती हैं, उन पुरुपोंको धन्य है। हे जगत्पति ! आप साम या बल किसी तरह भी किसीसे कुछ नहीं लेते, तो भी आप तीन लोकके चक्रवर्ती है। हे स्वामी ! जैसे सभी जलाशयोंके जलमें चंद्रका प्रतिबिंब रहता है ऐसेही, आप एकही सारे जगतके चित्तंमें निवास करते हैं। हे देव आपकी स्तुति करनेवाला पुरुप सबके लिए स्तुति करने योग्य बनता है; आपको पूजनेवाला सबके लिए पूज्य होता है।
और आपको नमस्कार करनेवाला सबके लिए नमस्कार करने लायक होता है, इससे आपकी भक्ति महान फल देनेवाली कहलाती है। दुःखरूपी दावानलसे जलनेवाले पुरुपोंके लिए आप