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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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हजार खर्वटों' और चौवीस हजार मंडवों और बीस हजार
आकरोंके वे स्वामी थे। सोलह हजार खेटोंके४ वे शासनकर्ता थे। चौदह हजार संवाहोंके तथा छप्पन द्वीपों (टापुओं) के वे प्रभु थे और उनचास कुराज्योंके वे नायक थे। इस तरह सारे भरतक्षेत्रके वे शासनकर्ता-स्वामी थे। (७०८-७२७)
अयोध्या नगरी में रहते हुए प्रखंड अधिकार चलानेवाले वे महाराज, अभिषेक उत्सव समाप्त हो जानेपर, एक दिन जब अपने संबंधियोंको याद करने लगे; तव अधिकारी पुरुपोंने, साठ १-खर्वट-जो पर्वतसे घिरा हो और जिसमें दोसी गाँव हो । २मंडव-जो पांच सौ गांवसे घिरा हो। -श्राकर-जहाँ सोने चाँदी श्रादिकी खाने हो । ४-खेट-जो नगर नदी और पर्वतीस घिग हो। ५-संवाह-जहाँ मस्तक पर्यंत ऊँचे ऊँचे धान्यके ढेर लगे हों।
बस्तियाँक अन्य भेद भी माने गये हैं। वे यहाँ दिए जाते हैं । १. ग्राम-जिसमें बाड़ों से घिरे घर हो, खेत और तालाव हो और अधिकतर किसान और शूद्र रहते हो। (क) छोटा गाँव-जिसमें सो घर हो, और जिसकी सीमा एक कोसकी हो । (ख) बड़ा गाँव-निसमें पाँचसो घर हो, जिसकी मीमा दो कोसकी हो और जिनके किसान धनवान हो। २. पत्तन-जो समुद्र के किनारे हो अथवा जिसमें गांव के लोग नावांसे श्राते जाते हो । ३. राजधानी-एक राजधानी में श्राटसो गांव होते हैं । ४. संग्रह-दस गाँवों के बीच जो एक बड़ा गाँव होता है और जिसमें सभी वस्तुओंका संग्रह होता है । ५. घोपजी बहुतले घोष (अहीर ) रहते हैं। (अादिपुराय सोलहवां पर्य: श्लोक १६४ से १७०)]