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त्रिषष्टि शन्द्राका पुरुष-चरित्र. पर्व १. सर्ग १.
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चंचल जलतरंगॉसे आगे बढ़ना है। आचार्य भी अपने साधुः परिवार सहित रवाना हुए । साधु ऐसे मालूम होते थे, मानों वे मूर्तिमंत मन गुण और उत्तर गुण हो। [६३-६४] ___ मंत्रक आगे धन लेट चलता था और उसके पीछे उसका मित्र मणिमद्र चलता था ! उसके दोनों तरफ घुड़सवार चल रहे थे। उस समय याकाश, सटके सफेद छत्रॉसे 'शरदऋनुकं बादलोले घिरा हुमामा और मयुर-छत्रास [मारपवार यने त्रास] पी ऋनुक्के बादलोन्ले घिरा हुमाना मालूम होता था। व्यापारको मारी चीजोको ऊँट, त्रैल, खच्चर और गंध इस तरह उठाप, लिए, जा रहे थे जैसे पृथ्वीको धैनवान बद्दन करता है।
वेगले चलने हए रोक पर कर पृचीपर टिकते थे और कर उठने थे यह समझ में नहीं आता था, इससे वे पले मालूम होने थे, माना मृग है । और चराकी पीठ पर लदे हुए चोर उछलने हर फैलकर ऐसे मालूम होते थे मानों उड़ने पंखियोंके पंन्न है।[६५-६८]
बड़ी बड़ी गाड़ियाँ-जिनन बैठकर युवक चल सकते थेचलती हुई ऐसी मालूम होती थीं, माना घर जा रहे है।[१९]
पानी ले जानेवाल बड़े शरीरों और कंयाँवाले मैले ऐसे 'जान पड़तथे मानों बादल-ज़मीन पर उतर पार, हैं और लोगोंकी प्यास बुझा रहे हैं। (७०)
उपस्कॉल भरी चलती हुई गाड़ियांची अावाज ऐसी मानुन होजी श्री मानों भारले दबी हुई पृथ्वी चिल्ला रही
1-टयनी देखी। शारों अनुकर धनवान पृथ्वी हिची हुई है।