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३३२ । त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४.
होती है। सर्वरत्नक नामकी निधिसे चक्ररत्न वगैरा सात एकेंद्रिय और सात पंचेंद्रिय रत्न उत्पन्न होते हैं। महापद्म नामकी निधिसे सब तरहके शुद्ध व रंगीन वस्त्र होते हैं। काल नामकी निधिसे वर्तमान भूत और भविष्य तीनों कालोंका,कृषि वगैरा कमांका और दूसरे शिल्पादिका ज्ञान होता है। महाकाल नामकी निधिसे प्रवाल, चाँदी, सोना, मोती, लोहा तथा लोहादिककी खाने उत्पन्न होती हैं। माणव नामकी निधिसे योद्धा,
आयुध और कवचकी संपत्तियाँ तथा युद्धनीति व दंडनीति उत्पन्न होती हैं । नवीं शंख नामकी महानिधिसे चार तरहके काव्यकी सिद्धि, नाट्य-नाटककी विधि और सब तरहके बाजे उत्पन्न होते हैं। इन गुणोंवाली नवों निधियाँ आकर कहने लगी, "हे महाभाग ! हम गंगाके मुखमें मगधतीर्थकी रहनेवाली हैं। तुम्हारे भाग्यसे हम तुम्हारे पास आई हैं। अपनी इच्छानुसार हमारा उपयोग करो-कराओ। शायद समुद्र क्षय हो जाए (सूख जाए) मगर हमारी शक्ति कभी क्षय नहीं होती।" यों कहकर सारी निधियाँ प्राज्ञाधारककी तरह खड़ी रहीं। ............. ___इससे निर्विकारी राजाने पारणा किया और फिर निधियोंके निमित्तसे अष्टाहिका उत्सव किया। सुषेण भी गंगाके दक्षिण प्रांतको, छोटे गाँवकी तरह, खेलही खेलमें जीतकर आगया ।. पूर्वापर समुद्रको लीलासे आक्रांत करनेवाले, मानों दूसरे वैताव्य हों ऐसे महाराज वहाँ बहुत समयतक रहे। (५७४-५८७). - एक दिन सारे भरतक्षेत्रके विजेता भरतपतिका चक्र अयोध्याकी तरफ चला। महाराज भी स्नान कर, कपड़े पहिन, बलिकर्म, प्रायश्चित्त और कौतुकमंगल कर इंद्रकी तरह गजेंद्र