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. भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
डाली। (५६२-५६७) . वहाँ नवनिधियोंके उद्देश्यसे पृथ्वीपतिने, पहले किए हुए तपसे मिली हुई लब्धियों द्वारा होनेवाले लाभके मार्गको यतानेवाला, अट्ठम तप किया। अहमके अंतमें नौनिधियाँ प्रकट हुई और महाराजाके पास आई । हरेक निधि एक एक हजार यदों. से अधिष्ठित थी। उनके नाम थे-नैसर्प, पांडुक, पिंगल, सर्वरत्नक, महापद्म, काल, महाकाल, माणव और शंखक' । ये पाठ चक्रोंपर रखी हुई थीं। इनकी ऊँचाई आठ योजन, चौड़ाई नौ योजन और लंबाई दस योजन थी। वैडूर्यमणिके किवाड़ोंसे उनके मुंह ढके हुए थे। उनकी आकृति समान थी तथा वे सोने व रत्नोंसे भरे हुए थे। वे चंद्र और सूर्यके चिह्नवाले थे। निधियोंके नामके अनुसारही उनके नाम थे। पल्योपमकी आयुवाले नागकुमार जातिके देव उनके अधिष्ठायक थे।
(५६८-५७३) उनमेंके नैसर्ग नामकी निधिसे छावनी, पुर (किला) गाँव खान, द्रोणमुख (४०० गाँवोंमें एक उत्तम गाँव), मंडप और पत्तन (नगर) वगैरा स्थानोंका निर्माण होता है। पांडुक नामकी निधिसे मान, उन्मान और प्रमाण इन सबका गणित होता है .और धान्य व बीज उत्पन्न होते हैं। पिंगल नामकी निधिसे नर, नारी, हाथी और घोड़ोंके सब तरहके आभूषणोंकी विधिमालूम
१-हिंदूधर्मशास्त्रों में इन निधियों के नाम ये हैं-महापन, पद्म, शंख, मकर, कच्छर, मुकुंद, पुंद, नील और ग्वर्य । ये करके बनाने कहलाते हैं।