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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत .
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स्तनपरकी कंचुकी चर्र चरं फटती थी और मानों स्वयंवरकी .माला हो ऐसी धवल (सफेद ) दृष्टिको वह बार बार भरतपर डालती थी। इस स्थितिको प्राप्त गंगादेवी क्रीडा करने की इच्छासे, प्रेमभरी गद्गद् वाणीमें भरत राजासे अत्यंत प्रार्थना करके • उनको अपने रतिगृहमें (शयन घरमें) ले गई। वहाँ भरत राजाने विविध भोग भोगते हुए एक हजार बरस, एक दिनकी तरह विताए । फिर किसी तरहसे देवीको समझा, उसकी आज्ञा ले, भरत वहाँसे निकले और अपनी प्रबल सेनाके साथ खंडप्रपाता गुफाकी तरफ चले । ( ५३७-५४८ )
केसरी सिंह जैसे एक वनसे दूसरे वनकी तरफ जाता है वैसेही अखंड पराक्रमी चक्रवर्ती खंडप्रपाता गुफाके पास पहुंचे। गुफासे थोड़ी दूरीपर उस बलवान राजाने अपनी फौजकी छावनी डाली। वहाँ उस गुफाके अधिष्ठायक नाट्यमालदेवको मनमें धारण कर अट्ठम तप किया। इससे उस देवका आसन काँपा। अवधिज्ञानसे भरत राजाका आगमन जान वह, कर्जदार जैसे कर्जदाताके पास जाता है ऐसेही, भेटें लेकर भरत राजाके पास
पाया । महान भक्तिवाले उस देवने छःखंड भूमिके आभूपण• रूप भरत महाराजको आभूपण भेट किए, और उनकी सेवा स्वीकार की। नाटक करनेवाले नटकी तरह नाट्यमालदेवको, विवेकी चक्रवर्तीने प्रसन्न होकर विदा किया और फिर पारणा कर उस देवका अष्टाहिका उत्सव किया।
अव चक्रीने सुपेण सेनापतिको आज्ञा दी, "खंडप्रपाता गुफा खोलो।" सेनापतिने मंत्रकी तरह नाट्यमालदेवका मन. में ध्यान कर, अष्टम तप कर पौपधशालामें जा पोपधत्रत ग्रहण