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. भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत :
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मध्यलोकके (मर्त्यलोकके ) पति भरत राजा चर्मरत्न और छत्ररत्नके बीचमें परिवार सहित आरामसे रहने लगे। (इस
तरह भरत और उनकी सेना रह रही थी। और) कल्पांतकाल. की तरह वहाँ पानी बरसते हुए नागकुमार देवताओंने सात “ दिन-रात बिताए । (४१८-४३६)
फिर राजाको विचार श्राया, "वह पापी कौन है जो मुझे इस तरह तकलीफ दे रहा है ?" राजाका यह विचार जानकर
सदा उसके पास रहनेवाले और महापराक्रमी सोलहहजार यक्ष : (तकलीफ मिटानेको ) तैयार हुए। उन्होंने भाथे बाँधे, धनुषों के चिल्ले चढ़ाए और मानों वे अपनी क्रोधरूपी आगसे शत्रओंको जला डालना चाहते हों ऐसे मेघमुख नागकुमारोंके पास आए
और बोले, "हे दुष्टो ! मूर्खकी तरह क्या तुम इन पृथ्वीके स्वामी . भरत चक्रवर्तीको नहीं जानते ? जो सारी दुनियामें अजेय हैं . उन राजाको तकलीफ देने के लिए कीगई कोशिश तुमको इसी तरह दुःख देगी जिस तरह पर्वतोंमें अपने दाँतोंका प्रहार करनेसे हाथियोंको होती है। तो भी अब खटमलकी तरह तुम यहाँसे चले जाओ, नहीं तो ऐसी बुरी मौत मरोगेजैसे पहले कोई नहीं मरा है । (४४०-४५)
. यह बात सुनकर मेघमुख नागकुमार घबराए और उन्होंने क्षणभरमें मेघवलको (वर्षाको) इस तरह समेट लिया जिस तरह जादूगर जादूके खेलको समेट लेता है। फिर वे किरात
लोगोंसे यह कहकर अपने स्थानपर चले गए कि तुम भरत राजा - की शरणमें जाओ।
. . देवताओंके वचनसे निराश बने हुए म्लेच्छ लोग और