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___ ३१८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४.
ऐसी अरिष्टकारक-दुख देनेवाली बारिश देखकर चक्रवती. ने पापात्र नौकरकी तरह अपने हाथसे चर्मरत्नको स्पर्श किया। " उत्तरदिशाके पवनसे जैसे मेघ फैलते हैं वैसे चक्रवर्तीका हाथ 'लगनेसे चर्मरत्न वारह योजन तक फैल गया। समुद्रके बीचमें पानीके ऊपर जैसे जमीन होती है वैसेही चर्मरत्नपर सारी सेना सहित महाराज बैठ गए। फिर विद्रुम (मूंगा ) से जैसे क्षीरसमुद्र शोभता है वैसे सुन्दर कांतिवाली सोनेकी निन्यानवे
हजार शलाकाओंसे (छातेकी तीलियोंसे) सुशोभित, त्रण और . प्रथी (गाँठ) से रहित कमलनालकी तरह सीधा सोनेकी सुन्दर
डेडीवाला और पानी, धूप, हवा और धलिसे बचाने में समर्थ ऐसे छत्ररत्नको राजाने स्पर्श किया, इससे वह भी चर्मरत्नकी तरह फैल गया। उस छत्रकी डंडीके ऊपर अंधकारका नाश करने केलिए राजाने सूरजके समान मणिरत्न रक्खा । छत्ररत्न
और चर्मरत्नका वह संपुट तैरते हुए अंडेके समानशोभने लगा। तभीसे लोगों में ब्रह्मांडकी कल्पना उत्पन्न हुई। गृहीरत्नके प्रभाव से उस चर्मरत्नमें अच्छे खेतकी तरह सवेरे बोया हुआ धान्य साँझको उत्पन्न होता है; चंद्रके प्रासादकी तरह उसमें सबेरे वोए हुए कूष्मांड ( कुम्हड़े ), पालक और मूली वगैरा शामको फल देनेवाले होते हैं; और सवेरे चोए हुए आम, केले वगैरा फलोंके वृक्ष भी साँझको, महान पुरुपोंके प्रारंभ किए हुए काम जैसे सफल होते है वैसेही सफल होते हैं। उस (संपुट) में रहे हुए लोग ऊपर बताए हुए धान्य, शाक-पात और फलोंका भोजन करके प्रसन्न थे, उद्यानमें खेलकूद करने गए हों ऐसे उनको फोजका श्रम भी मालूम नहीं होता था। मानों महल में रहते हों ऐसे ।