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२०) त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४. को माँगनेवाला वह कौन कुबुद्धि पुरुप है लिसने मेरी समामें
वाण फेका है ? वह कौन ऐसा पुरुष है जो ऐरावण हाथीके दाँत..को तोड़ कर उससे कानका नेवर बनाना चाहता है ? वह कौन - पुरुष है जो गमड़के पंखोका मुकुट धारण करना चाहता है ? वह . कोन है जो शेषनागके मस्तकपर रही मणि-मालाको लेनेकी चाह रखता है ? सूर्यके घोड़ेको हरनेकी इच्छा रखनेवाला वह कौन ऐसा पुरुष है कि जिसके घमंडको में, गरुड़ जैसे साँपकी जान लेता है वैसे, चूर-चूर कर ऐसा कहकर मगधाधिप एकदम उठग्बड़ा हुआ। बाँवीमेंसे सर्पकी तरह उसने न्यानसे तलवार ग्वींची और अकाशमें, धूमकेतुका भ्रम पैदा करनेवाली, उस तलवारको घुमाने लगा। उसका सारा परिवारमी कोपकी अधिकनासे इस तरह उठ खड़ा हुआ जिस तरह हवा वेगसे) समुद्रमें तरंगें उठती हैं। कई अपनी तलवारोंसे श्राकाशको काली विजलीकेसमान और कई अपने चमकते वसुनंदासे (हथियारोंसे आकाशको अनेक चंद्रमाांवाला बनाने लगे। कई मानके दाँतोंसे बने हुए हों ऐसे तेज भालांको चारों तरफ उछालने लगे,
और कई अागक्री जीभकी बहिनके समान परशुओंको (कुल्हाड़ियोंको) घुमाने लगे। कई राहुके समान भयंकर भागवाले मुद् गरोंको पकड़ने लगे; कई वनकी धारकं समान तीखें त्रिशूलोंको और कई यमराजके दंडके समान प्रचंड दंडाको उठाने लगे। कई शत्रुका विस्फोट (नाश) करने के कारणरूप अपनी भुजाएँ ठोकने लगे और कई मेघनादकी तरह ऊँची आवाजमें सिंहनाद करने लगे। कई 'मारों! मारो!' पुकारने लगे और कई 'पकड़ों! पकड़ो !' कहकर चिल्लाने लगे। कई 'ठहरो ठहरो !' कहने लगे