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__ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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नज़दीक जा पहुंचे। महाराजाने गंगातटकी विस्तृत भूमिको भी,.. अपनी सेनाकी जुदा जुदा छावनियोंसे, संकुचित बनाकर उस.. पर विश्राम किया। उस समय गंगातटकी जमीन, बरसातके मौसमकी तरह हाथियोंके भरते मदसे पंकिल (कीचड़वाली.) हो गई। मेघ जैसे समुद्रसे जल ग्रहण करता है, वैसे गंगाके निमल प्रवाहमेंसे, उत्तम हाथी इच्छापूर्वक जल ग्रहण करने लगे। अति चपलतासे बार बार कूदते हुए घोड़े, गंगातटमें तरंगोंका भ्रम पैदा करने लगे; और बहुत मेहनतसे गंगाके अंदर घुसे हुए हाथी, घोड़े, भैंसे और ऊँट, उस उत्तम सरिताको, चारों तरफसे नवीन जातिकी मछलियोंचाली बनाने लगे। अपने तटपर रहे हुए राजाको मानो अनुकूल होती हो वैसे गंगानदी अपनी उछलती हुई तरंगोंकी बूंदोंसे सेनाकी थकानको शीघ्रतापूर्वक मिटाने लगी। महाराजाकी बड़ी सेनासे सेवित गंगानदी शत्रुओं
की कीर्तिकी तरह क्षीण होने लगी। भागीरथी (गंगा) के किनारे उगे हुए देवदारुके वृक्ष सेनाके हाथियों के लिए, बिनाही मेहनतके बंधन-स्थान हो गए। (४८-६५)
महावत हाथियों के लिए पीपल, सल्लकी (चीड़), कर्णिकार (कनेर) और उदुंबर (गूलर) के पत्तोको कुल्हाड़ियोंसे काटते थे अपने ऊँचे किए हुए कर्णपल्लवोंसे (कानरूपी पत्तोंसे ) मानो तोरण बनाते हों वैसे पंक्तिरूप बँधे हुए हजारों घोड़े शोभते थे। अश्वपाल ( साईस) भाईकी तरह मूंग, मोठ, चने और जो वगैरा लेकर घोड़ोंके सामने रखते थे। महाराजाकी छावनी में अयोध्यानगरीकी तरह थोड़ेही समयमें चौक, तिराहे और दुकानों की पंक्तियाँ हो गई थीं। गुप्त, बड़े और मोटे कपड़ेके