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________________ २७६] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. होती 1 मनुष्य, तिर्यंच और देवताओंकी पर्षदामिसे किसीने साधुव्रत ग्रहण किया, किसीन श्रावकत्रत लिया और किसीने सम्यक्त्र धारों। उन राजतापसमि कच्छ और महाकच्छ के सिवा दूसरे सभी तापसाने स्वामीके पास पाकर दर्य सहित पुनः दीक्षा ली। उसी समयसे चतुर्विध संबक्री व्यवस्था हुई । उसमें ऋषभसेन (पुंडरीक) वगैरा साधु, ब्राझी वगैरा साध्वियों, भरत वगैरा धावक और मुंदरी वगैरा धाविकाएँ थे। यह चतुर्विध संघकी व्यवस्था नबसे अबतक धर्मके एक श्रेष्ट गृहरूप होकर चल रही है। · चतुर्दशपूर्व और द्वादशांगीकी रचना ___ उस समय प्रभुने गणधर नामकर्मवाले ऋषमसेन वगैरा चौरासी सबृद्धिवाले साधुओंको,सभी शास्त्र जिनमें समा नाते है एसी उत्पाद, विगम (व्यय) और श्रीव्य इन नामावाली पवित्र त्रिपदीका उपदेश दिया। उस त्रिपदीके अनुसार गणपनि अंनुक्रमसे चतुर्दशपूर्व थार. द्वादशांगीकी रचना की। फिर दंवता. ऑसे घिरा हुआ इंद्र, दिव्यचूर्णसे पूरा भरा हुया एक थाल लेकर प्रमुके चरणों के पास खड़ा रहा। भगवान ने लड़े होकर उनपर चूर्ण डाला और सूत्रसे, अर्थसे, मूत्रार्थसे, द्रव्यसे, गुणसे, पर्यायसे और नयसे उनको अनुयोग अनुन्ना (यात्रा) दी, तथा गएकी यात्रा भी दी। उसके बाद देवता, मनुष्य और उनकी ब्रियान ईदमिकी ध्वनिके साथ उनपर चारोतरफसे वासदेप किया (चूर्णविशेष डाला)1 मेघ जलको ग्रहण करनेवाले वृक्षोंकी तरह प्रभुकी यागीको ग्रहण करनेवाले सभी गश्वर हाथ जोड़कर बड़े रई। फिर भगवानने पूर्ववत, पूर्वामिमुग्य
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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