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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [२६३ अव्ययपद-मोक्ष पाया। इस अवसर्पिणी कालमें मरुदेवी माता प्रथम सिद्ध हुईं। देवताओंने उनके शरीरका सत्कार करके उसे क्षीरसागरमें डाला। तभीसे इस लोकमें मृतककी पूजा आरंभ हुई। कहा है कि,- "यत्कुर्वति महांतो हि तदाचाराय कल्पते ।" [महापुरुष जो काम करते हैं वह आचार-रिवाज मान लिया जाता है।] भरतकृत-स्तुति माता मरुदेवीको मोक्ष पाया जान भरत राजा ऐसे शोक और हर्षसे व्याप्त हो गए जैसे बादलोंकी छाया और सूरजकी धूपसे मिश्रित शरदऋतुका समय (दिन ) हो जाता है। फिर भरतने, राज्यचिह्नका त्याग कर, परिवार सहित पैदल चलकर उत्तर दिशाके द्वारसे समवसरणमें प्रवेश किया। वहाँ चारों निकायके देवोंसे घिरे हुए और दृष्टिरूपी चकोरके लिए चंद्रमाके समान प्रभुको देखा। भगवानकी तीन प्रदक्षिणा दे,प्रणाम कर, जुड़े हुए हाथ मस्तकपर रख चक्रवर्तीने इस तरह स्तुति करना आरंभ किया, (५२८-५३७) हे सारे संसारके नाथ, आपकी जय हो! हे दुनियाको अभय देनेवाले आपकी जय हो! हे प्रथम तीर्थंकर, हे जगतको तारनेवाले आपकी जय हो ! आज इस अवसर्पिणीमें जन्मेहुए लोक-रूपी कमलके लिए सूरजके समान प्रभो ! तुम्हारे दर्शनसे मेरा अंधकार दूर हुआ है और मेरे लिए सवेरा हुआ है। हे . नाथ ! भव्यजीवोंके मनरूपी जलको निर्मल करनेकी क्रियामें
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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