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________________ ___ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत . [ २४५ - हुआ, अर्थात लोगोंकी नींद जाती रही। सवेरेही स्वामीके दर्शनसे मैं अपने श्रात्माको और लोगोंको पावन करूँगा।' ऐसी इच्छा रखनेवाले बाहुबलीको वह रात महीनेके समान जान पड़ी। यहाँ रात जब प्रभातके रूपमें बदली तव प्रतिमास्थिति समाप्त कर (ध्यानावस्थाको छोड़) प्रभु हवाकी तरह दूसरी जगह चले गए। (३३०-३४४) सबेरेही बाहुबलीने बगीचेकी तरफ जानेकी तैयारी की। उस समय बहुतसे सूर्यों के समान बड़े बड़े मुकुटधारी मंडलेश्वर उनको-बाहुवलीको-घेरेहुए (उनकी हाजरीमें ) थे; उपायोंके मानों मंदिर हों ऐसे और साक्षात शरीरधारी अर्थशास्त्र हों ऐसे शुक्रादिकके समान बहुतसे मंत्री उनकी सेवामें थे। मानों गुप्त पंखोंवाले गरुड़ हों ऐसे और जगतका उल्लंघन करनेका वेग रखते हों ऐसे चारों तरफ खड़े हुए लाखों घोड़ोंसे वह सुशोभित हो रहे थे। ऊँचे ऊँचे हाथी थे। उनके मस्तकसे मदजल बह रहा था। वे ऐसे मालूम होते थे, मानों वे पृथ्वीकी धूलको शांत करनेवाले झरने जिनसे बह रहे हों ऐसे पर्वत हैं। और मानों पातालकन्याओंके समान और सूर्यको भी नहीं देखनेवाली वसंतश्री वगैरा अंत:पुरकी त्रियाँ भी, तैयार होकर, उनके आसपास खड़ी थी। उनके दोनों तरफ चामरधारी स्त्रियाँ थीं, उनसे वह राजहंस सहित गंगा-यमुना द्वारा सेवित प्रयागके समान मालूम होते थे। उनके मस्तकपर सफेद छत्र था, उससे वह ऐसे शोभते थे जैसे पूनोंकी आधी रातके चाँदसे पर्वत शोभता है। देवनंदी नामका छड़ीदार आगे आगे चलकर जैसे ईंद्रको मार्ग बताता है वैसेही, सोनेकी छड़ीवाला प्रतिहार उनको, आगे
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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