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२४४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३.
चरण हो वैसे वह भक्तिभावसे नम्र हो त्रिकाल-पूजा करने लगा। जब लोग पूछते थे कि यह क्या है ? तब वह जवाब देता था कि यह आदिकर्ताका मंडल है। फिर जहाँ जहाँ प्रभुने मिक्षा ग्रहण की वहीं वहीं लोगोंने उस तरहकी पीठिकाएँ वनवाई। इससे क्रमशः 'आदित्य पीठ' की प्रवृत्ति हुई। ( ३३०-३३४)
___ बाहुवलीका धर्मचक्र बनवाना
एक बार कुंजर (हाथी ) जैसे निकुंजमें ( लता-मंडपमें ) प्रवेश करता है वैसेही प्रभु साँझके समय बाहुबलीके देशमें उसकी तक्षशिलापुरीके निकट आए और नगरीके बाहर एक बगीचे कायोत्सर्ग करके रहे। उद्यानपालने (वागवानने) जाकर बाहुबलीको इसके समाचार दिए । तुरत बाहुवली राजाने नगर-रक्षक लोगोंको आज्ञा दी कि हाट-बाटको सजाकर सारे नगरका श्रृंगार करो। ऐसी आज्ञा होतेही सारे नगरम जंगह जगह कदलीके स्तंभोंकी तोरणमाला बनाई गई और उनसे लटकती हुई केलोंकी लुंवोंसे रस्ते चलनवालोंके मुकुट छूने लगे। मानों भगवान के दर्शन करने के लिए देवताओंके विमान पाए हों वैसे हरेक रस्तपर रत्नपात्रोंसे प्रकाशित मंच सुशोभित होने लगे। हवासे हिलती हुई ऊँची पताकाओंकी पंक्तिके बहाने मानों वह नगरी हजार हाथॉवाली होकर नाच करती हुईसी सुशोभित होने लगी। और चारों तरफ किए गए नवीन कुंकुम जलके छिड़कावरों सारे नगरकी जमीन ऐसी मालूम होती थी मानो उसने मंगल अंगराग किया है। भगवानके दर्शनकी उत्कंठारूपी चंद्रके दर्शनसे वह नगर मुमुद-खंडकी तरह (जिसमें कमल खिले हुए हों ऐसे स्थानकी तरह) विकसित