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चौबीस तीर्थंकर-स्तुति.
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घुसकिरीट-शाणाग्रो-तेजितांघ्रि-नखापालि। . . भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वमिमतानि वः ॥७॥
[देवताओंके मुकुट (ताज) रूपी शाण (सान) के अगले • भागके कोनोंसे जिनकी नखपंक्तिः चमकदार बनी है (यानी -देवताओंके,आगे आकर,चरणों में मुकुट सहित मस्तक झुकानेसे,
नाखून चमक रहे हैं) वे भगवान् सुमतिस्वामी तुम्हारी इच्छाएँ .. पूरी करें।
- पद्मप्रभ-प्रभोर्देह-भासः पुष्णंतु वः श्रियम् । .
अंतरंगारिमथने, कोपाटोपादिवारुणाः ।।८।। [अंतरंग वैरियों (काम, क्रोधादि) का मंथन (नाश) करनेके लिए कोपकी प्रबलतासे मानों लाल हो गई है ऐसी, 'पद्मप्रभ प्रभुके शरीरकी अरुण (लाल), कांति तुम्हारे कल्याणका (मोक्ष रूपी लक्ष्मीका) पोषण करे।]
श्रीसुपार्श्व-जिनेंद्राय, महेंद्र-महितांघ्रये ।।
नमश्चतुर्वर्णसंघ-गगनाभोगभास्वते ॥९॥ [चतुर्विध संघ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) रूपी आकाशके विस्तारमें सूर्य के समान चमकनेवाले, और इन्द्रोंके द्वारा पूजित चरणवाले श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्रको नमस्कार हो।]
चंद्रप्रभ-प्रभोश्चंद्र-मरीचि-निचयोज्ज्वला ।
मूर्तिमूर्त-सितध्यान-निर्मितेव श्रियेऽस्तु वः ॥१०॥ - चंद्रप्रभ प्रभुकी जो मूर्ति मूर्तिमंत शुक्ल ध्यानसे वनी... 'हुईसी मालूम होती है, वह तुम्हारे लिए शानलक्ष्मी प्रामिका