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भ० ऋपभनाथफा वृत्तांत
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करना शुरू किया। तभीसे कंदमूल-फलादिका आहार करनेवाले
और वनमें रहनेवाले जटाधारी तपस्वियोंकी जमात पृथ्वीपर फिरने लगी। (१२२-१२३) नमि विनमिका, प्रभुकी भक्ति करना, और विद्याधरोंका
ऐश्वर्य पाना। - कच्छ और महाकच्छके नमि और विनमि नामके विनयी पुत्र थे। वे प्रभुकी आज्ञासे, प्रभुने दीक्षा ली इससे पहलेही, कहीं दूर-देश गए थे। वहाँसे.लौटते समय उन्होंने अपने पिताको वनमें देखा । उनको देखकर वे सोचने लगे, "वृषभनाथके समान नाथ होते हुए भी अपने पिताओंकी ऐसी दशा क्यों हुई ? कहाँ उनके पहननेके वे बारीक वस्त्र और कहाँ इनके ये भील लोगोंके पहनने लायक बलकल (पेड़की छालोंके ) षख! कहाँ शरीर पर लगानेका उबटन और कहाँ पशुओंके लायक यह जमीनकी धूल ! कहाँ फूलोंसे सजे हुए केश और कहाँ यह घड़की बड़वाईके समान लंबी जटा ! कहाँ हाथियोंकी सवारी
और कहाँ प्यादोंकी तरह पैदल चलना!" इस तरह विचार कर वे अपने पिताओंके पास गए और प्रणाम कर उन्होंने उनसे सारी बातें पूछीं। तब कच्छ, महाकच्छने जवाब दिया।
(१२४-१२६) "भगवान ऋषभदेवने राज-पाट छोड़, भरतादि पुत्रोंको पृथ्वी घौट, दीक्षा लेली। हाथी जैसे गन्ना खाता है वैसेही हम सपने भी साहस करके उन्हीं के साथ दीक्षा लेली । मगर भूग्य, प्यास, सरदी और गरमी वगैराके दुःग्योंसे बराफर हमने,
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