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त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. सर्ग ३.
सहित प्रभुने मौन धारणकर पृथ्वीपर विहार करना (एक स्थानसे दूसरे स्थान को जाना ) शुरू किया । (६१-६३)
प्रभु पारणेके दिन गोचरीके लिए गए; मगर उनको कहींसे. आहार नहीं मिला। कारण, उस समय लोग भिक्षादानको नहीं जाननेवाले और एकांत सरल थे। मिनाके लिए जानेवाले प्रमुको, पहले की तरहही राना सममकर, कई लोग उनकें सूरजके उचःश्रवा नामके घोडेको भी वेगमें पीछे रख देनेवाले घोड़े भेट करते थे कई शायंसे दिग्गजोंको भी हरानेवाले हाथी भेट करते थे कई रूप-लावण्यमें अप्सराओं को भी लजानेवाली कन्याएँ भेट करते थे; कई विजलीकी तरह चमकनवाले श्राभूषण आगे रखने थे; कई साँन्के आकाशमें फैले हुए तरह तरहके रंगोंक समान रंगीन कपड़े लाते थे; कई मंदार-माला (स्वर्गके एक वृक्षके फूलोंकी माला) से स्पा करनेवाले फूलोंकी माला अर्पण करते थे; कई सुमन-पर्वतके शिस्त्रर लेना मोनेका ढेर भेट करते थे और कई रोहणाचल (रोहण नामक पर्वत ) की चूना (चोटी) के समान रत्नोंका ढेर अर्पण करते थे मगर प्रमु उनसे एक भी चीज नहीं लेते थे। मिक्षा न मिलने पर भी अदीन मनवाले प्रमु जंगम तीर्थकी नरह बिहार कर (भ्रमण कर) पृथ्वीतलको पावन करते थे। वे मुन्व-प्यास वगैराके परिसहाँको इस तरह सहन करते थे, मानों उनका शरीर सात घातुओका बना हुया नहीं है। नहाज जिस तरह पवनका अनुसरण करते है सहीस्वयमेव दीक्षित गना भीत्रामीक साय ही विहार करते थे। (३४-१००)