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: . . . . भ० ऋषभनाथका वृत्तांत
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को उनकी इच्छानुसार, वार्षिक दान देना आरंभ किया । नगर.. के चौराहों और दरवाजोंपर ऐसी डोंडी पिटवा दी गई कि जिसको जो कुछ चाहिए वह प्रभुके पास आकर ले जाए । स्वामीने दान देना शुरू किया, तब कुबेरने जूभक देवताओंको
आज्ञा दी कि वे प्रभुके पास धन पहुँचावें। जृभक देव इस तरहका धन-रत्न, जवाहरात, सोना, चाँदी वगैरा लाकर प्रभुके खजानेमें रखते थे कि जो चिरकालसे नष्ट हो गया था, खो गया था, मर्यादाको उल्लंघन करनेवाला था (यानी-लोगोंने जिसे अन्यायसे प्राप्त किया था), जो मसानोंमें, पहाड़ियोंमें, वगीचोंमें या घरों में जमीनमें गाड़कर-छिपाकर रखा गया था और जिसका कोई मालिक नहीं था। देवता इस तरह प्रभुके खजानेको भर रहे थे जिस तरह बारिशका पानी कुओंको भरता है। प्रभु सूर्योदयसे दान देना शुरू करते थे सो भोजनके समय तक देते थे। हर रोज एककरोड़ आठलाख स्वर्णमुद्राकी कीमत जितना दान देते थे। इस तरह एक बरसमें प्रभुने, तीनसीअठासीकरोड़ और अस्सीलाख स्वर्ण-मुद्राकी कीमत जितना धन दानमें दिया । प्रभु दीक्षा लेनेवाले हैं यह जानकर लोगों के मनोंमें भी वैराग्य-भावना जागी थी, इसलिए वे बहुत कम दान लेते थे। यद्यपि प्रभु इच्छानुसार दान देते थे तथापि लोग अधिक नहीं लेते थे। (१७-२५)
वार्षिक दान पूरा हुआ तब इंद्रका आसन काँपा। वह दूसरे भरतकी तरह प्रभुके पास पाया। जलके कलश हाथमें लिए हुग दूसरे इंद्र भी उसके साथ थे। उनने राज्याभिषेकफी तरहही दीनामहोत्सव संबंधी अभिषेक किया। वम और अलकारों के