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। त्रिषष्टि शन्हाका पुरुष-चरित्रः पर्ष १. सर्ग :. गमनकी किया करते हैं। मोहमें अय बने द्रुप प्राणियोंके जन्म को विश्कार है। कारण, उनका जन्म इसी तरह व्यर्थ बीन. जाता है जिस नरहनाने पादमीकी गन व्यर्य बीत जानी है।
"एन गगीपमोहा उद्युतमपि दे हिनाम् । मूलाधर्म निछंतति मृपका इव पादपम् ।।
[राग, द्वेष और मोह उद्योगी प्राणियों धर्मको भी इस ताइ जड़मूल में छंद डालन है जिस तरह हा वृक्षको छेद डालना है। ] मोहने से हुए लोग बड़क पेड़की नन्ह कोषको बढ़ाते है। यह कोष अपने बहानवालोंकोही असे बाजाना है। मानपर चढ़े हप. मनुष्य हाथीपर चढ़े हुए श्रादमियोंकी तरह, किसीकी परवाह नहीं करने और मर्यादाका उल्लंघन करते हैं। दुगराव प्राणी कांच बीनकी पत्नीकी नह सानु करनेवाली मायाको नहीं छोड़ते। तुषोदक (चाबल या बोकी आँनी) से जैसे दूध बिगड़ना है, और जानलमें जैस उजन कपड़े मैन होन है. वैसेंट्टी लोममे प्राणी अपने उत्तम गुणोंको मलिन करता. है। अयनुक इस भाररूपी बेलवान चे चार कपायरूपी चौकीदार, जागने हप चौकी कर रहा है, तुबनुक पुम्बाको मोन म मिल सकता है ? अहो ! भूत लगा हो ऐले अंगनानीके धादिंगन व हुए प्राणी अपने ही होते हुए श्रात्माको .. कैन पहचान मन है ? दवाओं जैम मिहको तंदुमन्तु बनाया जाता है वैसे मनुष्य नट्ट नरहकी भोजन-सामग्रियोंप, अपने श्रापही अपनी यात्माको उन्मादी बनाते हैं। (ये शेरको नोरोग बनानसे वह नीरोग बनानेवालेही पर आक्रमण करना , .