________________
२०२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग २.
उन भोले लोगोंन अनान आगमें डाला। वह सारा जल गया, तब उन्होंने श्राकर प्रभुसे कहा, "हे. स्वामी ! यह आग तो कोई मुक्कड़सी लगती है। हमने जितना अनाज उसमें डाला समीको बह खागई। उसने थोडासा भी वापस नहीं किया।" उस समय प्रमु हाथीपर सवार थे, इससे उन्होंने वहीं भीगीहुई मिट्टीका पिंड मँगवाया और उसकी हार्थी मस्तऋपर रखकर, हाथ से उसको फैलाकर, वैसे हायीक मस्तकके श्राकारका एक बरतन बनाया। इसतरह शिल्यों में प्रथम कुंमकारका शिल्प प्रमुने प्रकट किया। फिर स्वामीन उनमें कहा, "इस तरहकं दूसर बहुनसे बरतन बनाओ। ( उनको श्रागमें रखकर मिट्टीको मुन्नाओं ) फिर उन बरतनों (भीगा हुआ ) अनाज रखकर पकायो । अनानक यनयर बरतन धागयरसे उतार लो और फिर अनाज लायो।" उन्होंने प्रभुकी श्राबाके अनुसार काम किया। तमीने अन्हार पहने कारीगर हुए। उसके बाद प्रमुने (घर बनानेकी ऋन्ना सिखाकर.) बर्द्धकी यानी मकान बनानेवाले राज बनाए । कहा है
"विश्वस्य मुखपृष्टय हि महापुरुषसृष्टयः ।"
महापुमय जो बना है वह दनिया लाभ लिपट्टी होता है। रोम नन्त्रीरें बनाने और लोगों अनोन्त्र खेल लिए प्रमुन चित्रकला मिलाकर अनेक लोगोंको चित्रकार बनाया। लोगों के लिए बत्र चुननको (त्रुनाईका काम सिखाकर.) जुलाई, बनाए। कारगा, उस समय ममी कल्पवृक्षांक स्थानपर प्रमु एकही ऋत्ययन रद थे। लोगोंको, नावनों और फेशोंके गढ़नस नकलीफ उठाने देखकर.प्रभुने नापित बनाए ।