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१२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३,
(लिस तरह धरपके टुकड़ेको तोड़ते हैं वैसे.) अग्निसहित सरावसंपुटका चूर्ण कर डाला। तब अर्थ देनेवानी देवीन. प्रभुके गले कत्री बन्न डाला, उसके द्वारा लिहुए प्रभु भात -- भुवनमें गए। (२४-८४३)
— बहाँ वामदेवके कंदके समान मदनफल (मैनफाल-मांडल) से मुशोभित सूत्र (धान) बबरके हाथों में बाँध गए। देवियोंने वरको मातृदेवियोंके भाग ऊँच सोनके सिंहासनपर बिठाया। व बहाँ ऐसे शोमत ये नानों नपर्वतकी शिलापर सिंह बेटा हो। मुंदरियोंन शनीवृन और पीपलकी छालोंका चूर्ण करके उसका लेप दानों कन्याओं के हाथों में किया। वह कमदेव रुपी वृनचा दोहद पूर्ण किया हो ऐसा लगता था। जब लग्नचा टीक समय हो गया तब सावधान प्रमुने दोनों बालाओंके लेपवान हाथोंको अपने हादसे पकड़ा उस समय इंद्रने जनवाने वाले जैनेशालिवान्या वीज बोया जाना है वैस. लेपत्रात दोनों हस्तसंपुट में एक मुद्रिका हाली । प्रमुक दोनों हाथ जब उन दोनोंके हाथों मिल तब प्रभु मे शोमन लग से दो शाखानाने लवायाँ लिपटन वृद्ध शामता है। नदियाँच जल से समुहले मिलता है वैसे बधुओंकी प्रॉ वरची श्रॉसि मिलीं। विना वायु पानीची तरह वरवधुनोंक नयन नयनांस और मन मनांस मिल गय! ये पत्र दलकी नारिकानाने प्रतिबिंबित होने लगे। मालूम होने लग भानों श्रापली ग्रेमसे एकदुलरले दिनोंमें घुन गए हैं। (२४४-८५). ..' . उस समय विद्युत्रादि गजन बैंस नेमके पास रहते है
से प्रामानिक व भनुपर की तरष्ट्र भगवान मार एं।