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१] त्रिषष्टि शनाका पुरुष-चरित्रः यत्र १ मा ३.
शरीरमें नौ अमृतकुंडों मनान लगने थे। उन्होंने तर पर शिफ्ट हुए उनके बारे निचलकर उन देवियों मन्य और. अपसव्य (दाहिने और कर) अंगोंचो व चिया, मानों उनका शरीर मचतुरचमन्यानवाला है या नहीं इसकी जाँच की। इन बड अवाओन झुंदर वर्णवाली उन बान्ताओंको, बाइयोंकी तरह, नानों में उनकी पलता निवती हॉइस नन्वर्णकमें डाला । वुशी ली हुई उन अलगाने वर्णनले महोदाक समान ठणचा मी उनी वह लेप किया ! उस बाद दोनों ब्रो, मानों ने अपनी कुलदेवियाँ हो, इस नन्हवसर प्रामनार बिठाकरमाने लगाने भरे जलग्नान कराया । सुगवित गेनन अंगोन जना शहर पोकामनानी व उनक केशल रेशानी न पहनाकर उनको दुसरं शासनपर किया उन निगवान यानीकीनताहव्यवाही या कानों मोती बरस रहे हों और स्निाय न लन जिन शामः बहरहा है ऐले नगगीत गांजो दिव्य कृषित किया (सुगंवित किया) जिल वह सोनार गेनका लेप करते है वैसे ही उन बीपना शरीरपुर, सुगंधित अंगणार किया। उनीग्रीवायां गन्नों मुन्नात्रा ऋग्रभागॉन्दनबार पत्रवल्लरियाँ ( पन्नोंत्री बने). बनाईवे जान्देवी प्रशान्तिकं
१- बालन यानी उचललगाना शाईने उन लगानेवादलत्री कबर-उर नहीं निकल इनिरकर्षित साँचिन्तालनेवाली टाइटीना की। 2-3.