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[२१] इसका लोगोंमें प्रचार कर जैनधर्मकी महत्ता बढ़ाना जैनप्तमाज का मुख्य कर्तव्य है।
यह हिंदी अनुवाद स्वर्गीय आचार्य महाराज श्री विजयवल्लभसूरिजीकी आज्ञाके अनुसार किया गया है। उन्होंने प्रथम पर्वके दो सगोंका अनुवाद देखकर संतोष प्रकट किया था। उनका स्वर्गवास हो जाने के कारण वे पूरा अनुवाद न देख सके। उनकी इच्छा थी कि दसों पर्वोका हिंदी अनुवाद शीघ्र प्रकाशित हो जाए।
पुस्तक प्रेसमें दी गई उसी समयसे मैं बीमार हूँ; अब तक भी मुझे बीमारीसे पूरी छुट्टी नहीं मिली है। इसी कारण. से कुछ शीपकोंमें और कुछ दूसरे स्थानोंमें मामान्य भूलें रह गई है। यद्यपि ये भूलें ऐसी नहीं है कि जिनसे कथाका रस भंग हो या कोई तात्त्विक बात गलत लिख दी गई हो तथापि जो भूलें रह गई हैं उनके लिए आशा है क्षमाशील पाठक क्षमा करेंगे। शीर्षक विषयसूचीके सही माने जाएँ और दूसरी जगह जो भूलें जान पड़ें वे शुद्धिपत्रसे सुधार ली जाएँ; फिर भी कोई छूट गई हो तो विद्वान पाठक उसे बतानेकी कृपा करें। हरेक बात अच्छी तरह समझाने की कोशिश की गई है, जिस बातका स्पष्टीकरण मूलमें नहीं हो पाया है, उसका स्पष्टीकरण टिप्पणियोंमें किया गया है। कोई बात अस्पष्ट रह गई हो तो पाठक सूचना देनेको कृपा करें । वह स्पष्ट की जाएगी।