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सागरचंद्रका वृत्तांत
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चाँदी और रत्नोंके, चाँदी और रत्नोंके, तथैव मिट्टीके, ऐसे
आठ तरहके, हरेक तरहके एक हजार आठ, एक योजन ऊँचे (कुल ८०६४ ) सुंदर कलश बनाए । कुंभोंकी संख्याके अनुसारही और आठ प्रकारके पदार्थों के मारियाँ, दर्पण, रत्नकी करंडिकाएँ ( छोटी टोकरियाँ), सुप्रतिष्टक (डिब्बे), थाल, पात्रिकाएँ (कटोरियाँ) और फूलोंकी चंगेरियाँ ( डलियाँ); ये सब प्रत्येक तरहके ८०६४ गिनते, ५६४४८ बरतन और कलश मिलाकर ६४५१२-वगैरा बरतन, मानों वे पहलेहीसे तैयार रखे थे वैसे, तुरत बनाकर वहाँ लाए। (४७५-४८०)
फिर भाभियोगिक देवता घड़े उठाकर ले गए और उन्होंने क्षीरसागरमेंसे घड़े बारिशके पानीकी तरह भरलिए और वहाँसे पुंडरीक, उत्पल और कोकनद जातिके कमल भी, इसलिए लेभाए कि उनकी तीरनिधिके जलकी जानकारी को इंद्र जानले । पानी भरनेवाले पुरुष जलाशय (कूत्रा, वावड़ी या तालाब) मेंसे जल भरते समय जैसे कलश हाथमें लेते हैं पैसे ही देवोंने कलश उठाए और पुष्करवर समुद्रपर जाकर वहाँसे पुष्कर जातिके कमल लिए, फिर वे मागधादि तीर्थोंको गए और वहाँसे उन्होंने जल और मिट्टी लिए, मानों वे अधिक कलश बनाना चाहते हैं। माल खरीदनेवाले जैसे नमूना लेते हैं वैसेही उन्होंने गंगा आदि महानदियोंमेंसे जल लिया क्षुद्रहिमवत पर्वतसे उन्होंने सिद्धार्थ (सफेद सरसों) के फूल, श्रेष्ठ सुगंधकी चीजें और सषधि लिए। उसी पर्वतसे उन्होंने पद्म नामक सरोबरमेंसे निर्मल, सुगंधित और पवित्र जल और कमल लिए । एकही कामके लिए वे भेजे गए थे इसलिए मानों आपसमें स्पर्धा करते