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१५६] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. सर्ग २.
राक्षसोंके इंद्र भीम और महाभीम; किन्नरोंके इंद्र किनर और. किंपुरुषः किंपुम्पोंके इंद्र सत्पुरुप और महापुरुप; महोरंगोंके इंद्र अतिकाय और महाकायः गंधवाक इंद्र गीतरति और गीतयशा; अप्रज्ञप्ति और पंचप्रज्ञप्ति वगैरा व्यंतरोंकी दूसरी आठ निकायों-(जो वाणज्यंतर कहलाती हैं) के सोलह इंद्र, उनमेंसे अप्रज्ञप्तिके इंद्र संनिहित और समानक; पंचप्रज्ञप्तिके इंद्र धाता और विधाता ऋषिवादितके इंद्रऋपि और ऋषिपालक; भूतवादिनके इंद्र ईश्वर और महेश्वर; ऋदिनके इंद्र सुवत्सक
और विशालक; महादितके इंद्र हास और हासरति; कुष्मांडके इंद्र श्वेत और महाश्वेत, पावके इंद्र पवक और पत्रकपतिः और ज्योतिप्कोंके सूर्य और चंद्र, इन दोही नामोंके असंख्य इंद्र इस तरह कुल चौसठ इंद्र एक साथ मेमपर्वतपर पाए ।
(४६५-४७४) फिर अच्युतेंद्रन, जिनेश्वरके जन्मोत्सबके लिए उपकरण (साधन) लानेकी आभियोगिक देवताओंको श्राक्षा दी, इसलिए वे ईशान दिशाकी तरफ गए। वहाँ उन्होंने बैंक्रिय समुढातके द्वारा एक पलमें उत्तम पुद्गलोका आकर्षण करके सोनेके, चाँदीके, रत्नोंके, सोने और चाँदीके, सोने और रत्नोंके; सोना- १-चौसठ इंद-मानिकांक १०, मुवनपतिकी दम निकायके २०, व्यंतरोंके ३२ और ज्योतिप्कोंक २ इंद्र; इस तरह कुल ६४ इंद्र हुए । च्यातिएकांके सूर्य चंद्र नामकही असंख्य इंद्र है; इसलिए यह भी कहा जाता है कि असंख्य इंद्र प्रमुखा जन्मोत्सव करते हैं।