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- १५६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष - चरित्रः पर्व १. सर्ग
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उसी समय रत्नप्रभा पृथ्वीके मोटेपनके अंदर रहनेवाले भुवनपति और व्यंतर देवोंके इंद्रोंके आसन काँपे । चमरचंचा नामकी नगरीमें, सुधर्मा सभामें, चमर नामके सिंहासनपर, चमरासुर (चमरेंद्र) वैठा था । उसने अवधिज्ञानसे भगवानका जन्म जाना और सभी देवोंको यह बात जतलानेके लिए अपने द्रुम नामके सेनापतिसे श्रोघघोपा नामका घंटा चजवाया । फिर वह अपने चौसठहजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायत्रिंशक (गुरुस्थानके योग्य) देवों, चार लोकपालों, पाँच अग्र महीपियों, अभ्यंतर, मध्य और बाह्य इन तीन सभाओंके देवों, सात तरहकी सेनाओं, सात सेनापतियों, चारों तरफ चौसठ चौसठ हजार आत्मरक्षक देवों तथा दूसरे उत्तम ऋद्धिवाले असुरकुमार देवोंसे घिरा हुआ वह श्रभियोगिक देवके द्वारा तत्कालही बनाए हुए, पाँचसौ योजन ऊँचे, बड़े ध्वजसे सुशोभित और पचासहजार योजन के विस्तारवाले, विमानमें बैठकर भगवानका जन्मोत्सव करने की इच्छासे रवाना हुआ। वह चमरेंद्र भी शकेंद्रकी तरह अपने विमानको मार्ग में छोटा बनाकर, स्वामी के आगमन से पवित्र बने हुए मेरुपर्वत के शिखर पर आया । ( ४४३-४५१ )
वलिचंचा नामकी नगरीके इंद्र वलिने भी महौधस्वरा नामक बड़ा घंटा बजवाया । उसके महाद्रुम नामक सेनापतिके बुलाने से आए हुए साठहजार सामानिक देवों, उससे चौगुने (२४०००० ) अंगरक्षक देवों और दूसरे त्रायत्रिंशक इत्यादिक १ - रत्नप्रभा पृथ्वीकी मोटाई १८०००० योजन है । उसीमें वे रहते है । .