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[१८] इन शलाका पुश्यों में श्रात्माएँ ५६ है और स्वरुप ६० हैं, कारण, शांतिनाथजी, कुंथुनाथजी तथा अईनाथजी एकही स्वरुपमें तीर्थकर भी हप हैं और चक्रवर्ती भी, इसलिए ६३ मेसे ३ कम करने पर. ६० स्वाप रहत है। प्रथम वासुदेव त्रिपृष्टका जीवही महावीर स्वामीका जीव हुआ। इसलिए चार जीव तिरसठ नीबॉमसे कम करनेसे उनसठ जीव हैं।
तिरसठ शलाका पुरयोंकी माता साठ थीं। कारण,शांतिनाथ, युनाथ और अरहनाथ ये तीनों एकही भवमें तीर्थंकर भी थे और चक्रवर्ती भी अंतिग्मठ शताका पुनयाँक पिता एकावन है। कारण, वासुदेव और बलदेव एकही पिताकी नंतान होन है, इसलिए नी वासुदेवों और ना बलदेवोंके पिता नौ हुए और शांनि, जुय और अग्ह ये तीनों एकही पत्र में चक्रवती भी थे और तीनकर भी थे। इसलिए इनके पिता तीन थे। इस तरह कुल बारह कम करनेसे पिता इक्कावन हुए।
नीकि मत्र अनन्त हान है, परन्तु शलाका-पुरुष-चरित्र में तीयकरो जो भत्र दिए गए है व अन्यक्त्व प्राप्त करने के बाद मोन गण तत्र न ही दिया गया है। जैसे श्री ऋषभदेव भगवानके तरह मवांका वर्णन दिया गया है।
तीर्थकर होनेवाला आत्मा सम्यक्त्र प्राप्त करने के बाद तीसरं मत्रमें ही तीर्थकर नामकर्मचाधना है। तीर्थकर नामकर्म बीम स्थानकोमसे एक-दीकी अथवा बीसोंकी पाराधना करने से बचता है। बीस न्यानोका वर्णन पहले पर्व प्रथम मृगम (१०६ से १०८ पृष्ठ तक ) पाया है। इमको बीम पद भी कहत हैं।