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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत [१२३ ३. सुषमा दुखमा-यह दो कोटाकोटि सागरोपमका होता है। १. दुखमा सुषमा-यह बयालीसहजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपमका होता है। ५. दुखमा- यह इक्कीसहजार वर्षका होता है। ६. एकांत दुखमा- यह भी इक्कीसहजार वर्षका होता है। जिस तरह अवसर्पिणीके आरे कहे हैं उसी तरह उत्सर्पिणीके भी प्रतिलोम क्रमसे छः आरे समझने चाहिए। (अर्थात-१. एकांत दुखमा, २. दुःखमा, ३. दुखमा सुखमा, ४. सुषमा दुःखमा, ५. सुषमा, ६. एकांत सुषमा ) अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी कालकी संख्या कुल मिलाकर बीस कोटाकोटि सागरोपमकी होती है। इसे कालचक्र कहते हैं। (१११-११७) __ प्रथम बारेमें मनुष्य तीन पल्योपम तक जीनेवाले, तीन कोस ऊँचे शरीरवाले और चौथे दिन भोजन करनेवाले होते हैं । वे समचतुरस्रसंस्थानवाले, सभी लक्षणोंसे लक्षित (चिह्नोंवाले ), वज्जऋषभनाराचसंहननवाले और सदा सुखी होते हैं। वे क्रोधरहित, मानरहित, निष्कपट, निर्लोभी और स्वभावहीसे अधर्मका त्याग करनेवाले होते हैं। उत्तरकुरुकी तरह उस समय रातदिन उनकी इच्छाओंको पूर्ण करनेवाले मद्यांगादि इस तरहके कल्पवृक्ष होते हैं । (११८-१२१)। . १-मद्यांग नामके कल्पवृक्ष माँगनेसे तत्कालही उत्तम मद्य देते हैं । २-भृतांग नामके कल्पवृक्ष भंडारीकी तरह पान
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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