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१८] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग १.
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१२. ब्रह्मचर्य पद- अहिंसादिक मूलगुणों में और समिति श्रादि उत्तरगुणोंमें अतिचाररहित प्रवृत्ति करना बारहवीं ब्रह्मचर्यस्थानक आराधना है।
१३. समाधि पद-पल पल और चूण क्षण प्रमाद छोड़कर शुमध्यानमें लीन रहना तेरहवीं समाधि आराधना है।
१४. तप पद-मन और शरीरको पीड़ा न हो, इस तरह यथाशक्ति तप करना चौदहवीं तपस्यानक अाराधना है।
१५. दान पद-मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक तपस्त्रियोंको अन्नादिकका यथाशक्ति दान देना पंद्रहवीं दानस्थानक अाराधना है।
१६. यावृत्य पढ़ या यात्रच्च पद- प्राचार्यादि इसका, अन्न, जल, और श्रासन वगैरहसे बैंयावृत्य-भक्ति करना सोलहवीं बैंयावृत्यस्थानक आराधना है।
१७. संयम पद-चतुर्विध संघ सभी विन्नीको दूर करके मनमें समाधि (संतोष ) उत्पन्न करना सत्रहवीं संयमस्थानक अाराधना है।
१८. अमिनयनान पद--अपूर्व ऐसे सूत्र और अर्थ इन दोनोंका प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करना अठारहवीं अमिनबन्नान स्थानक धारावना है।
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१. जिनेश्वर, रि, बाचक, मुनि, दाजमुनि, स्थाविर मुनि, ग्लान (रोगी) मुनि, तबली मुनि, चैत्य और श्रमयमंघ-ये दस।