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६४ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग १.
नयाँ भव वे छहों महात्मा वहाँसे आयु समाप्त कर अच्युत नामके देवलोकमें इन्द्रके सामानिक देव हुए । कारण
"......"ताङ् न हि सामान्यफलं तपः ।" . ... [उस तरहके तपका सामान्य फल नहीं होता।] वहाँसे _वाईस सागरोपमकी आयु पूर्णकर वे च्यवे । कारण"....... अच्यवनं न हि मोक्षं विना क्वचित् ॥"
मोक्षके विना दूसरी किसी भी जगहपर अच्यवनस्थिरता नहीं है । ] (७८e-७६०)
दसवाँ भव पूर्वविदेहमें पुष्कलावती नामक विलय (प्रांत) में लवण समुद्रके पुंडरीकिणी नामका नगर है। उस नगरका राना वनसेन था। उसकी धारणी नामक गनीके गर्भसे उनमसे पाँच क्रमशः पुत्ररूप में जन्मे । उनमेंसे जीवानंदका नीव चतुर्दश महास्वप्नोंसे सूचित वजनाम नामका पहला पुत्र हुआ, रानपुत्र महीधरका जीव वाहु नामसे दूसरा पुत्र हुया, मंत्रीपुत्र सुबुद्धिका जीव सुबाहु नामसे तीसरा पुत्र हुआ; सेठपुत्र पूर्णभद्रका जीव पीठ नामसे चौथा पुत्र हुश्रा और सार्थवाहपुत्र पूर्णभद्रका लीव महापीठ नामसे पाँचवाँ पुत्र हुआ । केशवका जीव सुयशा नामसे अन्य राजपुत्र हुथा। मुयशा बचपनहीसे वजनामका आश्रय लेने लगा। सच है