________________
आठवाँ भव-धनसेठ
[
e
नहीं होती (ठगनेवालीही होती है । ) मित्रमंडली अनीर्ष्यालु (ईया न करनेवाली) नहीं होती (ईर्ष्या करनेवालीही होती है।) शरीरधारी निरोग (तंदुरुस्त ) नहीं होता (रोगीही होता है।) विद्वान लोग धनवान नहीं होते, गुणवान निरभिमानी (वगैर घमंडके) नहीं होते, खी अचपल (चंचलतारहित ) नहीं होती और राजपुत्र अच्छे चारित्र (चालचलन ) वाला नहीं होता।
(७४३-७४४) ये मुनि इलाज करने लायक हैं (और में इलाज करना चाहता हूँ) परन्तु इस समय मेरे पास दवाकी चीजें नहीं है। यह अंतराय है; इस व्याधिको मिटाने के लिए लक्षपाक तेल, गोशीपचंदन और रत्नकवल चाहिए। मेरे पास तेल है मगर दो चीजें नहीं है। ये चीजें तुम ला दो।" (७४५-७४६)
ये दोनों चीजें हम लाएंगे, फाहकर पाँची मित्र वालारमें गए। और मुनि अपने स्थान पर गए। ( ७४७)
उन पाँचों मित्रोंने बाजारमें जाकर किसी चूढ़े व्यापारीसे कहा, "हमको गोशीपचंदन और रत्नचलकी जरूरत है। कीमत लो और ये चीजें हमको दो।" उस व्यापारीने कहा, "इनमेंसे हरेककी कीमत एक लाख सोना मुहरें (अशरफियो) हैं। यानी दोनोंकी कीमत दो लाख अशरफियों हैं। कीमन लाओ और चीजें लेजानो। मगर पहले या यताओ कि तुमको पन चीजोंकी जरूरत क्यों हुई?" (७५-७६)
उन्होंने कहा, "जो कीमत हो सो लो और दोनों पीजे हमको दो। इनका उपयोग एफ महात्मा का इलाज करने किया जाएगा।" (७५)